Pages

Friday, October 26, 2018

कोरा कागज़




एक से रिश्ता कोरे कागज़ सा
एक से कोरे कागज़
में खींचती लकीरों सा

एक के कोरे कागज़ पर वो जो चाहे
लिख तो सकती थी
पर वो पढ़ कर भी
पढ़ा नहीं जाता था
यानि सदा कोरा रह जाता

दूजे कोरे कागज़ पर
लकीरों में रंग भरा था
जिसने मुलाकात करवाई
जीवन के अनछुए पहलुओं से
ज़ज्बातों से
ऐसे जज़्बात जिसमे बस
वो ही थी और कहीं कोई नहीं

एक उनका आसमान था
जिसे पाना चाहती थी
सब कुछ छोड़ कर
पर पाना नामुमकिन

दूजा उनके घर की छत
जिसे पाने का जुनून नहीं था
क्योंकि वो सदा ही उनके पास था

इन दो कागज़ों के अलग अलग
पहलुओं से सजी थी
इश्क की दुनिया
जो अमर है अमर रहेगी

#रेवा
#अमृता के बाद की नज़्म

4 comments: