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Saturday, November 24, 2018

बाजार




बाजार सजा है
तुम्हारी  प्यास बुझाने को
तुम वहां रोज़ जाते हो
फिर भी उसे वैश्या कह
तिरस्कृत करते हो
और ख़ुद सम्मानित
कहलाते हो

बीवी के रहते हुए भी
रासलीला रचाते हो
और ख़ुद को कृष्ण
सरीखे बताते हो

इतने सब पर भी
जाने क्या बाकी
रह जाता है की
तुम बलात्कार
पर बलात्कार
करते हो

इस घृणित कार्य को
करने के बाद भी
ख़ुद को तो बाइज्ज़त बरी
कर लेते हो और
उसको पीड़िता बता
बहिष्कृत करते हो

उसके पहनावे
उसके चलने के तरीके
उसके मेकअप
उसके घर से बाहर
निकलने के समय
सब पर दोष और पाबंदी
लगाते हो
पर ख़ुद को साफ़
बचा लेते हो ..

ये सारी कितनी अजीब
बात है न
हर बार लगातार
सारी परिस्थियों में
ख़ुद को दोषरहित
बताते हुए
साफ़ बचा लेते हो
और उसे कटघरे में
खड़ा कर देते हो !!


#रेवा
#पुरुष 

Friday, November 16, 2018

एक खाली कोना


मेरे दिल का
एक खाली कोना
जो कभी भरा नहीं
पर जब वो मिला
तुम्हारे दिल  के
खाली कोने से
तो अनायास ही
दोनों कोने भर गए
और साथ हम भी

हर खुशी और ग़म
साझा करते रहे
बातों में खिलखिलाहट की
लड़ियाँ पिरोते रहे
ऐसा लगा ज़िन्दगी
आसां हो गयी

पर अचानक तुमने
खींच लिया अपने
दिल के कोने को
अपनी तरफ
मैं हिल गयी
अब क्या करुँगी
कैसे जियूंगी
पर मैंने 
इस बार अपने
मन के कोने को
ख़ाली नहीं होने दिया
जानते हो क्यों ??

इतने दिनों के साथ ने
मुझे मजबूत बना दिया 
और मैंने अपने लिए 
अपने प्यार से 
भर लिया
मेरे दिल का वो कोना !!


रेवा

Wednesday, November 14, 2018

बादल


हर रोज़ की तरह 
आज भी
छत पर टहलने आयी
मेरे दोस्त
चाँद के समय पर

हम दोनों का यही
तो समय होता है
बेफिक्री का
जब बतियाते हैं
एक दूजे से
दिन भर की तमाम
बातें उलझने
बांटते हैं ,

पर आज वो दिखा ही नहीं
मैं बैचैन आस लगाए
करती रही इंतज़ार
तभी देखा चुपके से
मेरा दोस्त आया
पर आज वो बिल्कुल
लाल था अपने रंग के विपरीत
समझ नहीं आया क्या बात है?

कुछ न बोला चुप से
मेरे पास बैठ गया
पर उसकी लाल
आंखों ने बिन बोले
उसकी चुगली कर दी 

कुछ तो बात थी
जो आज चांदनी साथ न थी
उसे उदास देख मैं भी
दुखी हो गयी
पर जब मेरी आँखों में
अपने लिए दर्द देखा
चुप चाप फिर छिप
गया बादलों में
और बादलों ने भी
समेट लिया
उसे अपने में ,

दुखी थी पर लगा की
काश हमारे जीवन में भी
ऐसा बादल हो जो
समेट लें हमारे सारे दुखों को !!

#रेवा
#चाँद

Monday, November 12, 2018

चालाक बुनकर



मकड़ी एक चालाक बुनकर है
बुनती रहती है जाल
फंसाती रहती है उस जाले में
कीड़े मकोडों को
जो फंसकर गँवा बैठते हैं
अपनी जान 
वे बेचारे कीडे़ मकोडे़

जो मकड़ी बुनती है जाला
बनाती है फंदा
इतराती है
अपनी बुनकारी पर
जीवन भर,
वो भी एक दिन
इसी जाले के साथ
ख़त्म हो जाती है

मकड़ी की लाश
उसी के जाले में
जगह-जगह विराने में
झूलती रह जाती है
अफ़सोस का एक शब्द भी
किसी ज़बान पर नहीं ठहरता
गुमनामी की हवेली में
मकड़ियों के जाले पर
कोई मातम नहीं करता।


#रेवा 
#जाल 

Saturday, November 10, 2018

दीपावली


दीये की रौशनी से
जगमगाता रहे हमारे
देश का हर कोना

सब के दिलों में
जलती रहे
प्यार की लौ

इंसानियत की
खुशबू से  महकता रहे
हर इंसान

ग़रीब की झोपड़ी
में भी सुनाई दे
खुशियों की झंकार

दीपोत्सव लाए ऐसी बहार
मुबारक को आप सबको
दीवाली का त्योहार

#रेवा
#दीवाली

Monday, November 5, 2018

कछुआ

कछुए के नाम से 
एक कहानी बहुत प्रसिद्ध है
वो सही भी है

पर सही ये भी है कि
कछुआ धीरे चलता है
पर बुद्धू नहीं होता है
खरगोश की चपलता को
भली भांति समझता है
जब उसका मन होता है
अपने खोल में जा कर
चिंतन मनन करता है
और फिर
दुगने जोश के साथ
चल पड़ता है
और पहुंच जाता है
खरगोश से पहले
उस ठिकाने पर
जहां जाने की होड़ मची हो

कछुआ चलता रहता है
उसे पता होता है
क़दम क़दम की दूरी
अपने चलने की ताकत
खरगोश की छलांग में
उसके घमंड की उछाल को
भाँप लेता है कछुआ
सुस्ताने की आदत
खरगोश को है
यह हर एक कछुआ जानता है
कछुआ अपने और
खरगोश के बीच की रेस
बिना हार जाने की सोचे
स्वीकार करता है
क्योंकि
कछुआ चिंतन मनन करता है।


#रेवा
#कछुआ