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Wednesday, November 14, 2018

बादल


हर रोज़ की तरह 
आज भी
छत पर टहलने आयी
मेरे दोस्त
चाँद के समय पर

हम दोनों का यही
तो समय होता है
बेफिक्री का
जब बतियाते हैं
एक दूजे से
दिन भर की तमाम
बातें उलझने
बांटते हैं ,

पर आज वो दिखा ही नहीं
मैं बैचैन आस लगाए
करती रही इंतज़ार
तभी देखा चुपके से
मेरा दोस्त आया
पर आज वो बिल्कुल
लाल था अपने रंग के विपरीत
समझ नहीं आया क्या बात है?

कुछ न बोला चुप से
मेरे पास बैठ गया
पर उसकी लाल
आंखों ने बिन बोले
उसकी चुगली कर दी 

कुछ तो बात थी
जो आज चांदनी साथ न थी
उसे उदास देख मैं भी
दुखी हो गयी
पर जब मेरी आँखों में
अपने लिए दर्द देखा
चुप चाप फिर छिप
गया बादलों में
और बादलों ने भी
समेट लिया
उसे अपने में ,

दुखी थी पर लगा की
काश हमारे जीवन में भी
ऐसा बादल हो जो
समेट लें हमारे सारे दुखों को !!

#रेवा
#चाँद

2 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15.11.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3156 में जाएगा

    धन्यवाद

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