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Friday, December 7, 2018

पहले मिलन का एहसास






हर बार जाने किस
तलाश में ये वाक्या
बयान करती हूं
पर जितनी बार लिखती हूँ
लगता है
कुछ रह गया लिखना

मिले थे हम वहाँ
जहां मिलती हैं झीलें
अजनबी से उस शहर में
थी ये हमारी पहली मुलाकात
लेकिन पहचान लिया था
भीड़ में भी
दो जोड़ी आंखों को तुमने
चले थे फिर हम कुछ दूर साथ
पी थी कॉफी और कि थी
अनगिनत बात
चले गए फिर तुम अपने
रास्ते और मैं अपने
पर एक सकूं था साथ की
कम से कम आज
जिस हवा में तुम सांस ले रहे हो
ले रही हूं मैं भी वहां सांस
न हो फिर कभी मुलाकात
लेकिन पूरी ज़िंदगी
महकता रहेगा ये
पहली मिलन का एहसास


#रेवा

17 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 09 दिसम्बर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत सुन्दर

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (09-12-2018) को "कल हो जाता आज पुराना" (चर्चा अंक-3180) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. वाह बहुत सुन्दर ये पहले अहसास की सौरभ ।

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  5. बहुत ही सुन्दर रचना 👌

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  6. This comment has been removed by a blog administrator.

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