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Saturday, July 27, 2019

क्या कोई सुन सकता है




क्या कोई सुन सकता है
देख सकता है
खामोशी के अंदर का शोर

मन के अंदर छुपी बैठी वो
अलिखित कविता
वो मन के कोने में बैठा
एक छोटा सा बच्चा

महीने भर का हिसाब किताब
और उसमे छिपा बचत
उस बचत से जाने
क्या कुछ न ख़रीद लेने की
योजनाएं

घर के सारे दिन के काम काज
के बीच आसमान के टुकड़े के साथ
कुछ सुकून के पल

घर के लोगों के बीच तारतम्य बैठाती
औरत की खुद की टूटन
खुशी के पलों के लिए अपनी ही
टूटन जोड़ती वो स्त्री

सारे दिन मन के अंदर चलते
सवाल और जवाब
और उनमें खुद को दिए जाने
वाले दिलासे के
सब....ठीक हो जाएगा

मन की सोच के साथ
ढुलकते वो दो आँसू
क्या कोई सुन सकता है
देख सकता है

#रेवा




18 comments:

  1. बहुत बढ़िया

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  2. बहुत बढ़िया

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  3. बहुत ही सुन्दर रचना

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (29-07-2019) को "दिल की महफ़िल" (चर्चा अंक- 3411) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 30 जुलाई 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. शुक्रिया यशोदा बहन

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  6. बहुत गहरा आत्म विश्लेषण।
    सुंदर रचना।

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  7. सुंदर अभिव्यक्ति

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  8. बहुत लाजवाब...
    वाह!!!

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  9. अंतरात्मा की व्यथा को प्रदर्शित करती रचना।

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  10. This comment has been removed by a blog administrator.

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