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Tuesday, March 31, 2020

स्त्री मन



क्या लिखूं अब तो 
शब्दकोश भी खाली 
हो गया है
नहीं बचे अब कोई 
शब्द जो बयां कर सके 
वो एहसास जो मैं 
शिद्दत से महसूस करती हूँ 
और जो तुम्हें छू कर भी नहीं जाती 

तकलीफ़ मुझे बहुत होती है 
पर जानते हो तुम्हारा कितना 
नुकसान हो रहा है 
तुम ज़िन्दगी जी नहीं रहे हो 
बस बीता रहे हो 
अब तो तुमसे प्यार है 
ये भी नहीं बोल पाती 
हाँ ख़्याल जरूर है 

जानते हो न प्यार और ख़याल 
के बीच एक महीन रेखा है 
मुझे लगता है हमारे बीच अब वही 
एक कड़ी रह गयी है 

और तकलीफ़ इसलिए ज्यादा
होती है कि मैं कभी लिख कर 
कभी बोल कर कह लेती हूँ 
दिल का हाल 
पर तुम्हारे पास तो ये ज़रिया 
भी नहीं 

काश! तुम समझ पाते 
ये ज़िन्दगी एक बार ही मिली है 
खत्म हो जाएगी एक दिन
चाहो तो जी लो हर पल 
चाहो तो सिर्फ गुजार लो 
पल पल....

#रेवा

Sunday, March 29, 2020

बदचलन औरत

मैं वो औरत हूँ
जिसने की है
एक मर्द से दोस्ती
जिसमें पाया है मैंने
अच्छा पक्का दोस्त
जिसे मैं अपने दिल की
हर बात साझा कर
सकती हूँ
जो मुझे समझता है
हर तकलीफ़ में साथ
खड़ा रहता है
मैं जैसी हूँ उसके लिए
एकदम परफेक्ट हूँ

हाँ गलतियों में डांट
भी देता है
कभी पिता सा लाड़ करता है
कभी प्रेमी सी बातें
तो कभी दोस्त बन कर
सलाह देता है
उसे मैं हमेशा
अपना कंधा कहती हूँ
पर वो मेरा पति
नहीं है न दूर दूर तक
कोई रिश्ता है उससे
फिर भी वो सबसे करीब है
हाँ शायद मैं बदचलन
औरत हूँ
या बेबाक या मोर्डरन
जमाने की बिगड़ी हुई
औरत या फिर
मैं जैसा
कहती हूँ इंसान हूँ
और इंसान से की है
दोस्ती और रिश्ता
इंसानियत का है

#रेवा

Friday, March 20, 2020

डरपोक औरतें


समाज के कुछ तबकों को
औरतों से इतनी नफ़रत है कि वे
अनेकों घृणित नामों से
उसे नवाज़ते हैं
कभी रखैल, कभी वैश्या
तो कभी बदचलन
सोचती हूँ मैं
अगर मर्द होते ही नहीं
तो इन नामों का
कोई मतलब ही नहीं रह जाता
इन नामों से
सिर्फ औरतों को ही
इसलिए जोडा़ जाता है
कि औरतें
प्रतिशोध से परे हैं
लाज का दही
मुँह पर जमाये फिरती हैं
इसी तबके के लिये
इन्हीं तबकों में से
इन्हीं मर्दों के लिये भी
भंड़वे, बदजा़त
और ज़नमुरीद जैसे शब्द भी हैं
लेकिन नहीं करतीं इस्तेमाल
इन शब्दों को
ये खुदगर्ज, मनहूस
और डरपोक औरतें