Pages

Tuesday, December 15, 2009

काश !


काश तुमने मुझे कभी तो समझा होता .......

एक पल नज़र भर के देखा तो होता ,
एक पल मेरी नजरों को पढ़ा तो होता ,
एक पल मेरी तड़प को महसूस किया तो होता,
काश तुमने मुझे कभी तो समझा होता ........

जब जब तेरी जरूरत महसूस हुई दूर ही पाया तुझको ,
जब जब तेरे करीब गई दूर ही पाया तुझको ,
जब जब तेरे पहलु में पनाह मांगी दूर ही पाया तुझको ,
काश तुमने मुझे कभी तो समझा होता ..........

अब तो ये आलम है की दर्द लहू बन कर रिसता रहता है ,
आँखों से आंसू ऐसे बरसते है जैसे बादल से बारिश की बुँदे ,
हँसी होंठो का साथ देने से इंकार करती है ,
काश तुमने कभी मुझे दिल से महसूस तो किया होता ,
काश तुमने मुझे कभी तो समझा होता .....................

रेवा

5 comments:

  1. Pata nahi ki, ham bhi kitnon ko samajh pate hain...aur aise hee dararen bantee jaatee hain!

    ReplyDelete
  2. dard ko bahut achhe alfaaz men piroyaa hai
    padh ke samjh ata hai ki tera dil royaa hai

    bahut khuloos ke sath dard lo alfaaz diye hain aap ne bahut achee tahreer huyee hai

    ReplyDelete
  3. Kavita ke patra ki awastha kuchh parwane jaisi hai..muhabbat hai shama se aur oose apane jaisa he premi banana chahti hai..per isi koshish mein khud fanah ho jaana he parwane ka muqaddar hai....!!

    Raat ke andhere main chand ki chandani to hoti hai...jo sheetal kar deti hai...suraj to nikalne se raha ...jeevan ke har rung mein rung jaana bandagi ki inteha hai...

    ReplyDelete
  4. दर्द लहू बन कर रिसता रहता है ... khubsurat nazm ke liye badhaayee...

    ReplyDelete
  5. काश तुमने कभी मुझे दिल से महसूस तो किया होता ,
    काश तुमने मुझे कभी तो समझा होता ..

    इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

    ReplyDelete