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Friday, February 17, 2012

कहाँ चले गए मेरे पापा ?

ये कैसा नियम है 
भगवान का ,
कहाँ ले जाते  है 
वो इन्सान को ?
कहाँ चले गए 
मेरे पापा ?
कितना आवाज़ देती हूँ 
बुलाती हूँ उन्हें 
नहीं जवाब देते ,
पहले तो 
एक आवाज़ मे
सुन लेते थे ,
अब क्या हुआ ?
क्यों रूठ गए मुझसे ,
क्यों नहीं मुझसे पूछते
"बेटा कैसी हो ?
कुछ परेशानी तो नहीं तुम्हे" ,
क्यों नहीं शिकायत करते की ,
" तेरी माँ मुझसे बहुत लडती है ,
मीठा खाने  नहीं देती ",
  मैं किसे बोलूं "पापा "
कहाँ चले गए मेरे पापा ?


रेवा 

6 comments:

  1. मर्मस्पर्शी सृजन !!
    साथ हो या ना हों..
    पर उनकी यादें तो हर सफर में साथ रहती हैं ...
    छूटती नहीं ...

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  2. बहुत ही भावुक, मार्मिक एवं हृदय को व्यथित कर देने वाली रचना।
    कृपया इसे भी पढ़े-
    नेता- कुत्ता और वेश्या(भाग-2)

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  3. मर्मस्पर्शी भावुक कर देने वाली रचना।

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  4. aap sabka shukriya.....mere papa is 28thjan ko chal base...bass unki yaad may likha tha

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  5. .




    आदरणीया रेवा जी
    सस्नेहाभिवादन !


    मर्मस्पर्शी है आपकी रचना …
    पिता को खोने का दुख कभी कम नहीं हो सकता …

    समय मिले तो इस लिंक पर मेरी रचना पढ़ें-सुनें

    आए न बाबूजी…



    मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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