ये कैसा नियम है
भगवान का ,
कहाँ ले जाते है
वो इन्सान को ?
कहाँ चले गए
मेरे पापा ?
कितना आवाज़ देती हूँ
बुलाती हूँ उन्हें
नहीं जवाब देते ,
पहले तो
एक आवाज़ मे
सुन लेते थे ,
अब क्या हुआ ?
क्यों रूठ गए मुझसे ,
क्यों नहीं मुझसे पूछते
"बेटा कैसी हो ?
कुछ परेशानी तो नहीं तुम्हे" ,
क्यों नहीं शिकायत करते की ,
" तेरी माँ मुझसे बहुत लडती है ,
मीठा खाने नहीं देती ",
मैं किसे बोलूं "पापा "
कहाँ चले गए मेरे पापा ?
रेवा
भगवान का ,
कहाँ ले जाते है
वो इन्सान को ?
कहाँ चले गए
मेरे पापा ?
कितना आवाज़ देती हूँ
बुलाती हूँ उन्हें
नहीं जवाब देते ,
पहले तो
एक आवाज़ मे
सुन लेते थे ,
अब क्या हुआ ?
क्यों रूठ गए मुझसे ,
क्यों नहीं मुझसे पूछते
"बेटा कैसी हो ?
कुछ परेशानी तो नहीं तुम्हे" ,
क्यों नहीं शिकायत करते की ,
" तेरी माँ मुझसे बहुत लडती है ,
मीठा खाने नहीं देती ",
मैं किसे बोलूं "पापा "
कहाँ चले गए मेरे पापा ?
रेवा
मर्मस्पर्शी सृजन !!
ReplyDeleteसाथ हो या ना हों..
पर उनकी यादें तो हर सफर में साथ रहती हैं ...
छूटती नहीं ...
बहुत ही भावुक, मार्मिक एवं हृदय को व्यथित कर देने वाली रचना।
ReplyDeleteकृपया इसे भी पढ़े-
नेता- कुत्ता और वेश्या(भाग-2)
मर्मस्पर्शी भावुक कर देने वाली रचना।
ReplyDeleteaap sabka shukriya.....mere papa is 28thjan ko chal base...bass unki yaad may likha tha
ReplyDelete.
ReplyDeleteआदरणीया रेवा जी
सस्नेहाभिवादन !
मर्मस्पर्शी है आपकी रचना …
पिता को खोने का दुख कभी कम नहीं हो सकता …
समय मिले तो इस लिंक पर मेरी रचना पढ़ें-सुनें
आए न बाबूजी…
मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
Rajendra ji shukriya
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