कभी कभी
बहुत याद आता है मुझे
वो बचपन का गुजरा जमाना ,
वो भैया से झगडे
और दीदी की पुचकार ,
छोटी छोटी बातों मे
रूठना और छुप जाना ,
रो रो कर अपनी हर बात मनवाना ,
पापा का लाड बरसाना
मम्मी का झूठ बोल कर
खाना खिलाना ,
गुप्ता जी के दूकान से
चोरी चोरी जा कर
१० पैसे के गटागट खाना ,
दोस्तों के साथ
कबड्डी और कित कित खेलना ,
माँ को मना कर दोस्त के घर
पढने जाना ,
अब तो बस आँखों मे बसे हैं
वो दिन ,वो पलछिन ,
काश ! कोई लौटा दे
बहुत याद आता है मुझे
वो बचपन का गुजरा जमाना ,
वो भैया से झगडे
और दीदी की पुचकार ,
छोटी छोटी बातों मे
रूठना और छुप जाना ,
रो रो कर अपनी हर बात मनवाना ,
पापा का लाड बरसाना
मम्मी का झूठ बोल कर
खाना खिलाना ,
गुप्ता जी के दूकान से
चोरी चोरी जा कर
१० पैसे के गटागट खाना ,
दोस्तों के साथ
कबड्डी और कित कित खेलना ,
माँ को मना कर दोस्त के घर
पढने जाना ,
अब तो बस आँखों मे बसे हैं
वो दिन ,वो पलछिन ,
काश ! कोई लौटा दे
वो बचपन का गुजरा जमाना /
रेवा
रेवा
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
ReplyDeleteअब तो बस आँखों मे बसे हैं
ReplyDeleteवो दिन ,वो पलछिन ,
काश ! कोई लौटा दे
वो बचपन का गुजरा जमाना /
Bas ab yahee sab yaaden rah jatee hain!Jo rula jaatee hain!
दिल को छू गयी...
ReplyDeleteअनमोल रचना !!
वो दिन ,वो पलछिन ,
काश ! कोई लौटा दे....
सही कहा आपने बचपन के दिनों को याद करके मन करता है एक बार फिर उन अलमास दिनों को जी लें।
ReplyDeleteसादर
Kabhi nahee lautta bachpan!
ReplyDeleteaap sabka bahut bahut shukriya.......
ReplyDeleteवाह ...बचपन याद करवा दिया
ReplyDeleteshukriya Anju ji
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता बचपन याद दिला दिया अपने
ReplyDeleteमेरी कविता के कुछ अंश
लोटा दो वो बचपन की यादे , वो गलियों के नुकढ़ की बाते
लोटा दो मेरे जीते कंचे जो बाकि है |
वो वो सपनो की राजकुमारी लोटा दो वो दादा जी की कहानी
वो ऊंट की सवारी , वो १० पेसे की पेन्सिल ,
वो चुपके गुटके कहने की आदत , लोटा दो वो बचपन की बाते मेरी बचपन की यादे , वो मासूम चेहरा , वो मासूमियत की लाली
क्यों नहीं लोटा ते वो मेरे पापा की पपी
ना ज़मीन, ना सितारे, ना चाँद, ना रात चाहिए,
माँ जो बचपन में करती वो प्यार चाहिए
लोटा दो वो मेरा बचपन की बाते वो वो आँखों के आंसू
काश कोई लोटा दे वो बचपन का गुजरा जमाना
दिनेश पारीक
thanx bhai....wah kya lines hai...too gud
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