कभी कभी सोचती हूँ
क्या रिश्ता है मेरा तुम्हारा ?
दोस्ती का या प्यार का ?
दोस्ती ऐसी जैसी
कृष्ण सुदामा की थी ,
या प्यार ऐसा जैसा
मीरा ने कृष्ण से किया था /
या कोई और रिश्ता ?
क्या हर रिश्ते को नाम देना जरूरी है ?
इतना ही काफी नहीं की
मन मिल गए ,
जब मुझे तुम्हारी जरूरत होती है
तो हमेशा तुम मेरे पास होते हो ,
समझते हो मुझे ,
समझाते हो मुझे ,
न कुछ गलत करने देते हो
न होने देते हो ,
और जब तुम्हे मेरी जरूरत होती है
तो मै तुम्हारे पास ,
जरूरत न भी हो तो
हम एक दुसरे के साथ ,
बहुत कुछ बाँट लेते हैं ,
हंस लेते है , रो लेते हैं /
क्या इतना काफी नहीं ,
क्या इस रिश्ते को नाम देना जरूरी है ???
रेवा
kuchh rishton ko naam ke bandhan mein naa baandhna hi achchha hota hai.....
ReplyDeleteaise rishte nayab hote hain!
ReplyDeleteकोमल भावों की प्रभावी अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteसुंदर पंक्तियाँ रची हैं....
"इतना ही काफी नहीं की
मन मिल गए......"
और जब तुम्हे मेरी जरूरत होती है
ReplyDeleteतो मै तुम्हारे पास ,
जरूरत न भी हो तो
हम एक दुसरे के साथ ,
बहुत कुछ बाँट लेते हैं ,
हंस लेते है , रो लेते हैं /
क्या इतना काफी नहीं ,
क्या इस रिश्ते को नाम देना जरूरी है ???speechless ........bahut umda prastuti.....bahut bahut sunder bhav.badhai
जिन रिश्तों के नाम नहीं होते वो स्थाई होते हैं क्योंकि अपेक्षा के बदले कुछ पाने की आकांक्षा नहीं होती बस प्रेम कि चाहत होती है. सुन्दर रचना, बधाई.
ReplyDeleteनाम देना तो ज़रूरी नहीं ॥पर समाज के नियमों की खातीर सोचना ज़रूर पड़ता है
ReplyDeleteरेवा जी
ReplyDeleteनमस्कार !!
.....जिन रिश्तों के नाम नहीं होते वो स्थाई होते हैं सुन्दर रचना !!!
aap sabka bahut bahut shukriya
ReplyDeletewaah dil ke khubsurat bhav ...
ReplyDeleteAnu ji bahut bahut shukriya apka
ReplyDeleteदीदी बहुत ही अच्छी तरह से अपने अपने मन के भाव व्यक्त किये है
ReplyDeleteऔर बात रही रिस्तो की तो अपने सही कहा है बहुत रिश्ते अच्छे होते है जिनको नाम नहीं आयाम दिया जाता है वो भी अपने जीवित मन से
shukriya Dinesh
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