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Tuesday, April 3, 2012

खुद को कहते इंसान हैं

इंसान कितने दोगले होते हैं
हर बार नवरात्र मे
देवी माँ की पूजा करते हैं
छोटी छोटी कन्याओं को
भोजन कराते हैं
आशीर्वाद लेते हैं ,
फिर उन्हें ही जन्म लेने
से पहले मार डालते हैं ,
उनके साथ बलात्कार
करते हैं ,
ताकि वो जीते जी ही
मरे के सामान हो जाये ,
इतने पर भी पेट नहीं भरता ,
दहेज़ के लिए उन्हें
प्रताड़ित कर ,
जिंदा जला देते हैं /
जानवरों जैसा सुलूक कर ,
खुद को कहते इंसान हैं /


रेवा


10 comments:

  1. रेवा जी
    नमस्कार !!
    पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...

    ...इस रचना के लिए बधाई स्वीकारें.

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  2. बहुत सुंदर संदेश देती कविता.....!!!!

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  3. कटु यथार्थ लिखा है आपने।


    सादर

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  4. समाज के एक वीभत्स रूप को प्रदर्शित करती सार्थक रचना ...

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  5. agar woh apne ko insaan kahte hai...to samajh lo...ki insaaniyat kitni gir gayi hai.....
    Shame! Shame!! Shame...!!!

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  6. सटीक लिखा है .... अच्छी प्रस्तुति ...

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  7. सुन्दर भावमय प्रस्तुति.

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  8. आज का कड़वा सच ....बहुत खूब

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