इंसान कितने दोगले होते हैं
हर बार नवरात्र मे
देवी माँ की पूजा करते हैं
छोटी छोटी कन्याओं को
भोजन कराते हैं
आशीर्वाद लेते हैं ,
फिर उन्हें ही जन्म लेने
से पहले मार डालते हैं ,
उनके साथ बलात्कार
करते हैं ,
ताकि वो जीते जी ही
मरे के सामान हो जाये ,
इतने पर भी पेट नहीं भरता ,
दहेज़ के लिए उन्हें
प्रताड़ित कर ,
जिंदा जला देते हैं /
जानवरों जैसा सुलूक कर ,
खुद को कहते इंसान हैं /
रेवा
हर बार नवरात्र मे
देवी माँ की पूजा करते हैं
छोटी छोटी कन्याओं को
भोजन कराते हैं
आशीर्वाद लेते हैं ,
फिर उन्हें ही जन्म लेने
से पहले मार डालते हैं ,
उनके साथ बलात्कार
करते हैं ,
ताकि वो जीते जी ही
मरे के सामान हो जाये ,
इतने पर भी पेट नहीं भरता ,
दहेज़ के लिए उन्हें
प्रताड़ित कर ,
जिंदा जला देते हैं /
जानवरों जैसा सुलूक कर ,
खुद को कहते इंसान हैं /
रेवा
रेवा जी
ReplyDeleteनमस्कार !!
पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...
...इस रचना के लिए बधाई स्वीकारें.
बहुत सुंदर संदेश देती कविता.....!!!!
ReplyDeleteकटु यथार्थ लिखा है आपने।
ReplyDeleteसादर
समाज के एक वीभत्स रूप को प्रदर्शित करती सार्थक रचना ...
ReplyDeleteagar woh apne ko insaan kahte hai...to samajh lo...ki insaaniyat kitni gir gayi hai.....
ReplyDeleteShame! Shame!! Shame...!!!
सटीक लिखा है .... अच्छी प्रस्तुति ...
ReplyDeleteसुन्दर भावमय प्रस्तुति.
ReplyDeleteआज का कड़वा सच ....बहुत खूब
ReplyDeleteaap sabhi ka bahut bahut shukriya
ReplyDeletesahi kaha aapne
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