एक प्रशन मुझे बार- बार सताता है , क्या माँ के सम्मान के लिए हमे एक दिन चाहिए , जिसे हम " मदर्स डे " कहते हैं ? क्या बाकि 364 दिन हमे उनका सम्मान नहीं करना चाहिए ? कितनी ही दुखद घटनाएं सामने आती है तब हम उनपर ध्यान ही नहीं देते / बस इस एक दिन हम उनका सम्मान करने का दम भरते हैं / आये दिन बच्चे माँ को घर से निकाल कर ओल्ड एज होम भेज देते हैं ,जहाँ वो अपनी ख़ुशी से महरूम , बेगानों के साथ जीवन बिताने पर मजबूर हो जाती हैं , तब हम इस दिन को भूल जातें हैं ? जब उनके साथ दुर्व्यहार करते हैं , उन्हें एक पुराना सामान समझ कर घर के एक कोने तक सिमित रखते हैं , तब इस दिन को भूल जाते हैं ? भूल जाते हैं की कभी इसी माँ ने अपने दुःख सुख भूल कर इतना बड़ा किया , समाज मे सर उठा कर जीने लायक बनाया / हमारी मानसिकता इतनी ओछी क्यों हो गयी है ? क्या हम 365 दिन मदर्स डे नहीं मना सकते ? उन्हें बच्चो से कुछ नहीं चाहिये , बस प्यार और सम्मान के सिवा / क्या वो भी हम उन्हें नहीं दे सकते ,क्या इस एक दिन उनका सम्मान कर के हम अपनी जिम्मेदारी को पूरा कर रहे हैं ? ये एक बड़ा प्रश्न है /
माँ तो सिर्फ माँ होती है...... .माँ तुझे सलाम...
ReplyDeleteसार्थक प्रयास..
ReplyDeleteसमाज को आईना दिखाता हुआ एक सटीक लेख !!
मैं निश्चित ही आपके इस विचार का समर्थन करता हूँ , हमारे माता एवं पिता ऐसी किसी भी सामजिक औपचारिकता की परिधि से परे हैं और उनकी हर छोटी बड़ी ज़रूरतों का ख़याल रखना हमारा कर्त्तव्य है ही , और किसी संतान को , अपने कर्त्तव्य याद कराने के लिए , नाना प्रकार के "डेज़" की ज़रूरत नही होनी चाहिए .. ये पश्चिमी हवा है ! संभवतः ये उन बच्चों के लिए है जो साल भर न करते हों ... कम से कम ... एक दिन तो अपनी माँ का सत्कार करें ... कौन जाने .. तब हो नयी शुरुआत ?
ReplyDeleteसटीक लेख !!
ReplyDeleteमाँ तुझे सलाम