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Friday, December 7, 2012

क्या यही वो ज़िन्दगी है

रोज़ की और और की दौड़ मे
खुशियों के वो छोटे छोटे पल
कहीं दब कर रह गयें हैं ,
और सबसे बड़ी बात
ये हमें पता भी नहीं चलता की
हम कब एक robot वाली
ज़िन्दगी जीने लगे हैं ,
न हमारे पास जीवन साथी
की बातें सुनने का समय होता हैं
न बच्चो की शरारतों मे खुश होने का ,
बस जीए चले जा रहे हैं
क्या यही वो ज़िन्दगी है
जिसकी हम कामना करते हैं ,
नीरस ,बेमायने
क्या हम वक़्त निकाल कर सोच पायेंगे ????????

रेवा 

8 comments:

  1. जो ना सोचेगें तो बहुत कुछ खो देगें !!

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  2. Bahut kuchh bahut peechhe chhoot gaya...

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  3. बहुत सुन्दर
    इस जिंदगी की दोड़ मैं हम लोग धीरे 2 अपने आप को खो रहे है

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  4. मार्मिक प्रस्तुति...
    सच में हम सब जाने क्यों ऐसी नीरस जिन्दगी बस जिए जा रहे हैं...!!

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  5. दिनांक 30/12/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  6. वक़्त की रफ़्तार के साथ कदम मिलाने में सब छूट गया है.
    सुन्दर भाव.

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