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Wednesday, December 12, 2012

स्त्री

स्त्री
बोलने को शक्ति स्वरुप
घर की धुरी ,घर की लक्ष्मी , 
जिसके बिना घर, घर नहीं होता 
जो अपने से पहले 
घर वालों का ध्यान रखती है ,
चाहे खाना हो या कपड़े 
पहले उनकी जरूरते 
पूरी करती है ,
फिर खुद के बारे मे 
सोचती है ,
पति का तो खास 
ध्यान रखती है ,
अपनी हर एक दुआ मे 
उसे शामिल करती है ,
पर कितने पति होंगे 
जो भगवान से 
अपनी बीवी की लम्बी उम्र 
की कामना करते होंगे ?
अगर पति प्यार न भी करे 
तो भी उसे लगता है 
की शायद परेशान हैं 
कोई बात नहीं ,
बीमारी मे भी ध्यान 
न रखे तो भी 
वो कभी शिकायत नहीं करती ,
उसे लगता है उससे भी जरूरी 
उनके पास काम है ,
हर कठिनाई मे 
सोचा जाता है की 
वो खुद ही संभाल लेगी समझदार है  ,
पर इन्सान है वो भी 
कभी कुछ भूल से 
भी गलत हो गया तो  
बोला जाता है की उसमे 
बुद्धि की कमी है ,
कितनी दोहरी 
मानसिकता लिए जीते हैं लोग 
शायद सब घरों मे नहीं 
पर अभी भी 
बहुत घरों की कहानी है ये 
पर कब तक ?


रेवा 



10 comments:

  1. बिलकुल सच कहा रेवा.....
    लाख जतन कर ले एक स्त्री...उसकी एक भूल उसे कटघरे में खड़ा कर देती है....
    जाने कब तक चलेगा ये सिलसिला.....कब तक???

    सस्नेह
    अनु

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  2. KYA AISEE SOCH EK PATI KI NAHI HO SAKTI???
    WAISE BEHTAREEN ABHIVYAKTI:)

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  3. बिलकुल सही कहा आपने।


    सादर

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  4. सच कहा ... स्त्री ही क्यों ... सार्थक प्रश्न उठाती है ये रचना में ...

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  5. जब तक स्त्रियाँ थेथर रहेगीं !!

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  6. bahut achee aur sachhee rachanaa bahut kuch kah gayeen tum stree se bhee purush se bhee

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  7. हर स्त्री के जीवन की गाथा

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  8. बहुत से घरों की कहानी ....सच कहती हुई रचना

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  9. बहुत सटीक रचना

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  10. सरल सबदों में,सुंदर भावों के साथ उम्दा रचना........

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