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Monday, December 2, 2013

सृजन से दूर



इन दिनों काफी मसरूफ रही
ज्यादा कुछ तो नहीं हुआ ,
पर मैं सृजन कि दुनिया
से दूर हो गयी ,
ऐसा लगा मानो
अपनी रूह से जुदा हो गयी ,
बिना अपने एहसासों को
व्यक्त किये
जीना कितना दुश्वार है
ये पता चला ,
लगा जैसे
बहते पानी को
रोक दिया है किसी ने ,
आज मैं तहे दिल से
उस लम्हे का शुक्रिया
करना चाहती हूँ
जिस लम्हे मैंने
अपने एहसासों को
व्यक्त करना शुरू किया
और आप सब का भी
आपने मेरा  भरपूर साथ दिया।

"कविता जगत को कोटि कोटि धन्यवाद "


 रेवा


17 comments:

  1. Shai kaha Reva aapne srajn se dur rhana dusvarrr hota hai

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  2. बिना अभिव्यक्ति ...पानी बिन मछली ...
    नई पोस्ट वो दूल्हा....

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  3. इसलिए अब दूर न जाना कभी :-)
    रोटियां सेंकते ...दाल छौंकते लिखी जाती हैं सबसे सुन्दर प्रेम कविताएँ.....

    सस्नेह
    अनु

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  4. very well expressed,nice to see u back Rewa.. keep it up..love..

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  5. बढ़िया प्रस्तुति-
    आभार आदरणीया-

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  6. May I ask you what is the reason to go far off from writing new poems?
    Vinnie

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  7. Saty Baat Kahi Aapne Bahin.
    Likhna Ek Nasha Ki Tarah Hai.
    2 Din Agar Kuchh Na Likho To Man Vyakul Hone Lagta Hai.

    Bahut Khoob Man Me Umare Sailab Ko Bayan Kiya Aapne.

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  8. true
    घायल की गति घायल जाने ! सखि शुभकामनाएँ

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  9. खुबसूरत अभिवयक्ति....

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  10. sachhi baat ji aap gayee hi kyun ...main bhi dhundh rahi thi aapko :))

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  11. यह दुनिया मन सी होती है

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  12. व्यस्तता भी रोक नहीं पाती मुझे इसलिए
    पल चुरा चुरा भाग आती हूँ यहाँ
    हार्दिक शुभकामनायें

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  13. खुबसूरत अभिवयक्ति
    बड़े दिनों की अधीर प्रतीक्षा के बाद आज आपका आगमन हुआ है

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  14. बिलकुल यह दुनिया अपने मन की है जहां अपने मन की कहने वाले भी है और आपके मन की सुनने वाले भी है इसलिए फिर कभी दूर न जायेगा यहाँ से ...:))

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