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Sunday, April 27, 2014

अजनबी


ज़िन्दगी के सफर मे
मिल जातें है कई लोग ,
कुछ दिल से जुड़ जाते है
कई बस यूँही कुछ पल
साथ रहते हैं ,
पर ज़िन्दगी के हर मोड़ पर
चाहे कितनी भी
मुसीबतें आये ,

जीवन साथी सदा
साथ निभाते है न ?
लेकिन अगर वोही
अजनबियों जैसा व्यवहार करे तो ?
शायद तब भी
सफर ख़त्म तो नहीं होता
पर कठिन हो जाता है ,
"जैसे एक ही कमरे में
सालों से रह रहे दो लोग
अजनबियों से भी ज्यादा अजनबी "


रेवा

Friday, April 25, 2014

corruption का एक और रूप

काफ़ी सालोँ  बाद कोल्कता में दुबारा रहने का मौका मिला ,पति का यहाँ ट्रान्सफर हुआ था ,खुश भी थी और दुखी भी, यहाँ का एक ऐसा रूप देखा  जिससे मैं काफी आहत हूँ ।
यहाँ हर सुख सुविधा है , अच्छे लोग हैं,अच्छा खान पान ,और लड़कियां भी यहाँ  सुरक्षित हैं ,पर जब यहाँ मैं अपनी बेटी का स्कूल मे एडमिशन करने निकली तब ये रूप देखा , कैसे पैसो से बच्चो के भविष्य के साथ खिलवाड़ होता है।
१ महीने घुमी मैं इस चक्कर मे ,लगने लगा शायद मेरी बेटी ही कुछ पढाई में कमज़ोर है ,पर जब लोगों को अपनी व्यथा बताई ,तब समझ आया बच्चा पढ़ने में फिस्सडी हो या होशियार उससे कोई फर्क नहीं पड़ता ,यहाँ तो बस पैसा फेको तमाशा देखो। लाखों में बच्चा जीरो से हीरो और मनचाहे स्कूल में तालीम हासिल कर सकता है। वार्ना घर पर बैठा कर रखो ,ऐसे स्कूल मे सीट खाली नहीं है ,एंट्रेंस टेस्ट का दावा करते हैं ,पर पैसे देते ही सीट भी खाली और टेस्ट भी क्लियर। स्कूल के चपरासी से लेकर जाने सिस्टम मे कितने लोग जुड़े हैं  ,हम माँ बाप से बात करते हैं कुत्तों की तरह जैसे हमने पता नहीं कितना बड़ा गुनाह कर दिया हो ,पर बच्चों के लिए वो भी सेह लो ,पर ये उनके के भविष्य से खिलवाड़ है ................ये कहाँ तक सही है  ?
शायद इसमे  गलती भी हमारी ही है ,हमने पैसे देने शुरू किये तो लोगों ने अपना चैनल बना  लिया  , पर गलती जहाँ हो, जैसी हो भुगत रहे हैं बच्चे और उनके माता पिता .........पैसे वाले तो पैसे देकर अपना काम निकाल लेते हैं ,भुगतते हैं मिडिल क्लास लोग और उनके बच्चे।
पर इन सबसे ऊपर ये बच्चों की और पूरी सिस्टम की बात है ..................बहुत दुःख और तकलीफ हुई मुझे ये सब देखकर ,ये भी corruption का एक गन्दा रूप है।

रेवा

Sunday, April 20, 2014

नाराज़

नहीं बन पायी मैं
अपनी कहानी वाली मिनी
बहुत कोशिश की ,
अपने आप को
हर कसौटी मे
खरा साबित करने की ,
पर जाने हर बार
कुछ रह ही जाता है ,
पता नहीं मेरे प्रयास 
मे कमी है या मुझमे  ,
या मेरे नज़रिये मे 
पर जो भी है
बहुत अकेली पड़ गयी हूँ ,
क्यूंकि खुद से नाराज़  हूँ आजकल।


रेवा


Friday, April 11, 2014

हाल

हँसी आती है अपने हाल पर
विरह से नाता टुटा
पर वेदना ही वेदना है
हर घड़ी हर चाल पर ,
दोष दूँ तक़दीर को या
रोऊँ समय की मार पर ,
या इंतज़ार करूँ की
कब करवट लेगा वो ऊपर वाला
मेरी गुहार पर ……।

रेवा

Thursday, April 3, 2014

पहचान

देखा इन दिनों चेहरों पे
नक़ाब कई ,
अपने ,पराये, दोस्त ,दुश्मन
इनमे  थे सभी ,
न मांगी थी मैंने
दौलत  और शौहरत कभी ,
बस चाह थी थोड़ी सी
मदद प्यार और सहारे कि
पर वो भी न दे सके
ये सभी ,
दुःख हुआ
बहाये आँसूं भी ,
पर अच्छा है
इस मुश्किल घड़ी ने पहचान करा दी सभी की ./


रेवा