Pages

Wednesday, February 25, 2015

प्यार की खुशबू


ऐसी चली फागुन की पुरवाई
फिर तेरी याद हो आई ,
यादों के बंद बक्से से
प्यार की खुशबू ने
ली अंगड़ाई ,
बाँवरे मन ने की
कोशिश हज़ार
पर हो गया मदहोश
फिर एक बार ,
जाने ये कैसा इत्र है
जो महका गया
मेरा तन और मन
बन कर बरखा की बौछार ।

रेवा

8 comments:

  1. खुशबू हवाओं में तैर रही है। हुनरमंद ही इसे पहचानते हैं।

    ReplyDelete
  2. Waaaaaah is itra ki khushbu unhe hi aati hai jo muhbbat me bhig chuke hote hain.......

    ReplyDelete
  3. मन - भावन शब्द ,
    कुछ अधरों पर ठहरे हैं
    कुछ आखों में बिखरे हैं
    http://savanxxx.blogspot.in

    ReplyDelete
  4. दिल से लिखी गयी और दिल पर असर करने वाली रचना , बधाई तो लेनी ही होगी

    ReplyDelete