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Friday, March 27, 2015

                                            
                                               सरस काव्य-गोष्ठी (कोलकाता )


मुझे ये बताते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है की , कोलकाता की संस्था "बंगीय हिन्दी परिषद" ने 22.3.15 रविवार 

को कवि-कल्प के तत्वावधान मे एक काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया।  

इस ऐतिहासिक संस्था को बड़े-बड़े साहित्यकार जैसे महादेवी वर्मा ,हरिवंश राय बच्चन ,निराला जी 

ने अपने पद्चिन्हों से नवाज़ा है। 

मुझे बहुत ख़ुशी महसूस होती है की मुझे इस संस्था से जुड़ने का मौका मिला ,और  मैंने अपने काव्य पाठ 

का सफर यहाँ से शुरू किया। जिसके लिए मैं रवि प्रताप जी ,नीलिमा दीदी और मेरी सखी आशा पाण्डेय 

की सदा आभारी रहूंगी। 

अपने अनुभव के बारे मे क्या बताऊ ……… वहां अनेक दिग्गज शायर , कवियों और कवित्रियों को सुनने 

का मौका मिला , उनकी सोच और उनके कलम को सलाम ,ऐसा लग रहा था मानो वो शाम काव्य रस से 


सरोबार हो गयी हो , कहाँ समय बीता पता ही नहीं चला। 

इस काव्य गोष्ठी के सफलता की खबर प्रभात खबर , दैनिक जागरण ,जनसत्ता ,राजस्थान पत्रिका और 

अनेक अकबरों ने छापी। 


रेवा 

प्रभात खबर 
दैनिक जागरण

Monday, March 23, 2015

अपनी पहचान..........


नहीं चाहिये मुझे
तुम ,तुम और तुम 
नही मानूँगी अब मैं 
सबकी बात ,
सिर्फ़ इसलिए की मुझे 
कहलाना है 
एक अच्छी बहु 
ननद ,भाभी और 
वो तमाम ऐसे रिश्ते 
जो बस चुप रहकर 
सुनने और सही 
होते हुए भी अपेक्छा न 
करने से मिलते  है  ,
अब मुझे भी चाहिए 
अपना आत्मसम्मान 
अपने काम और बातों 
मे  आत्मसंतुष्टि ,
और अपनी पहचान.......... 

रेवा 


Wednesday, March 18, 2015

अंतर (लघु कथा )

अंतर (लघु कथा )


आज सुबह - सुबह फिर रमेश और रीना लड़ पड़े ....... काम को ले कर बात हो रही थी ,
रमेश ने कहा "तुम्हे अपना एक छोटा सा काम बोला था लैपटॉप पर सर्च कर के कर देना
पर तुमसे एक काम नहीं होता ,  करती क्या हो सारा दिन ?" बच्चे स्कूल चले जातें है ,
मैं ऑफिस....... बस पड़ी रहती हो सारे दिन सोफे पर टीवी के सामने ,
इतना सुनना था , रीना की आँखों से आंसू बहने लगे ,
सुबह ५ बजे से होता है उसका दिन शुरू और रात १० बजे ख़त्म …
गुस्से मे आज उसने सारे दिन का ब्यौरा बताया रमेश को,
और पूछा ''अब बोलो कब करूँ तुम्हारा काम ''!
तो रमेश ने मुँह बना कर टका सा जवाब दिया , " तुममे और इस काम वाली बाई मे कोई अंतर नहीं "
वो तो अनपढ़ है और तुम पढ़ी लिखी अनपढ़......................


रेवा टिबड़ेवाल







Wednesday, March 11, 2015

डोली (लघु कथा )



 काफी दिनों से श्याम यहाँ आ रहा था , आज आख़िर उसने अपने मन की बात बोल ही दी
"मुझसे शादी करेगी लता "??
बहुत ज्यादा तो नहीं कमाता पर इतना कमा लेता हूँ की हम दोनों का पेट भर सकूँ। 
" लता को विश्वाश ही न हुआ अपने कानों पर, लेकिन वो कुछ कहती इससे पहले मालकिन आ गयी और बोली  "ऐसा कैसा ले जायेगा मेरी लड़की को पूरे  १०००० में ख़रीदा था पहले रोकड़ा धर मेरे हाथ में फिर सोचेगी "।
 किसी तरह 2 महीने में श्याम ने पैसे जोड़े और लता को लेने आ गया।
 पर जैसे ही मालकिन के हाथ में रुपया रखा  उसने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया
 "ये  तो मूल है बाबू , सूद कहाँ है ? श्याम समझा नहीं
 तो उसने फिर कहा  "तू मेरी लड़की को ले जायेगा तो ये जो रोज़ कमाती है
 उसका नुकसान नहीं होगा क्या मेरे को " ??
 श्याम की समझ में न आया क्या बोले और रूपए कहाँ से लाये ??
 इतने में वहां की एक और लड़की आयी और मालकिन के पैर पकड़ कर गिड़गिड़ाने लगी
"एक अच्छा काम कर दो न मालकिन इसे जाने दो, आज पहली बार यहाँ से किसी वैश्या की डोली उठ रही है।
 तेरे नुकसान की भरपाई मैं कर देगी "  डबल काम करेगी
 शयाम और लता की आँखें नम हो गयी।






रेवा टिबड़ेवाल  

Friday, March 6, 2015

कोई और रंग



नहीं चढ़ता अब कोई और रंग
उस एक रंग के चढ़ने के बाद ,
चेहरे का रंग लाल हो गया
उसके एक स्पर्श के साथ ,
साँसें गुलाबी हो गयी
आलिंगन मे समाने  के बाद ,
मैं राधा और वो कान्हा बन गया
इस प्यार की डोर के साथ !

रेवा


Monday, March 2, 2015

बाल विवाह (लघु कथा )

गीता बार बार रो रही थी ,                            
"पिताजी मैं नहीं पहनूँगी ये जोड़ा "
मुझे माँ को बहनो को और आपको छोड़ कर कहीं नहीं जाना ,
पर बलवंत नहीं माना  ,
चिल्लाते हुए बोला " एक एक कर के हाँथ पीले नहीं करूँगा तो कब तक तुम ४ बहनों को पार लगाउँगा "
चुप - चाप पेहेन ले।
गीता लाख गिडगिडायी पर उसकी एक न चली , जोड़ा पहनते हुए
उसे ये डर भी सताने लगा की जैसा उसके साथ हो रहा है ,
उसकी तीनो बहनों के साथ न हो।वो अपनी बहनों की तरफ देखने लगी उनके  मासूम चेहरों ने ,
उसमे एक अजब से विश्वाश को पैदा किया
और मंडप मे जाने से पहले गीता ने भगवान के सामने हाँथ जोड़ कर प्रण लिया
"मेरे साथ जो अन्याय हो रहा है वो मैं अपनी बहनों के साथ कभी नहीं होने दूंगी "
अब ये मेरे जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य् है।
इतना कह कर एक दृढ निश्चय के साथ चल पड़ी।

रेवा