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Tuesday, April 7, 2015

गिद्ध




आज फिर मेरा
विश्वाश नोचा गया ,
ये नोच खसोट 
करने वाला गिद्ध 
और कोई नहीं 
बल्कि प्यार नामक 
शब्द का उपयोग 
करने वाला इंसान है ,
हँसी ! आती है 
प्यार का नगाड़ा 
बड़े जोर से बजाते है 
पर उनकी नज़र 
रहती है सिर्फ 
स्त्री की देह मे ,
"माटी से बना देह 
मिल जाएगा माटी मे 
उसे इतना मत नोचो की 
अपनी ही देह से घृणा हो जाये"। 


रेवा 


16 comments:

  1. कुछ होते हैं जो प्रेम के व्योपारी होते हैं ... हर चीज व्यावसायिक नज़र से देखते हैं ...
    बेहतरीन रचना ...

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  2. सच को दिखाया है इस रचना ने । शशक्त भाव ।
    बहुत सुन्दर । जब कोई रचना सामजिक परिवेश के ताने बाने से निकलती है तो वो पूर्ण होती है ।
    आप की रचना पूर्ण है ।

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  3. भावनात्मक रचना।। ऐसी स्थिति के हम कहीं न कहीं जिम्मेदार ज़रूर है !!
    ह्रदय को कचोटती बहुत ही मार्मिक रचना :)

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  4. हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (08-04-2015) को "सहमा हुआ समाज" { चर्चा - 1941 } पर भी होगी!
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. इंसानी भेष में गिद्ध बहुत है आज....सटीक मार्मिक रचना

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  6. bahut hi mrmik sabdo ka nichod thanks

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  7. सटीक प्रस्तुति

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  8. रेवा जी,
    आज कल के नौजवान प्रेम का अर्थ ही भूल गये हैं, दिल छु जाने वाली रचना बहुत अच्छी keep it up,
    थैंक्स

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