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Friday, April 24, 2015

सिर्फ तुम


रात की खामोशियों मे
चाँद की करवटों मे
चादर की सलवटों मे
मन की कसमसाहट मे
तकिये के गीले गिलाफ मे
दर्द भरे इस दिल मे
तुम सिर्फ तुम ही तो हो

रेवा 

14 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25-04-2015) को "आदमी को हवस ही खाने लगी" (चर्चा अंक-1956) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. सुंदर भावपूर्ण रचना ....बधाई

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  3. गागर में सागर

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  4. बहुत खूब, बहुत ही सुंदर कविता।

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  5. बहुत खूब ... उनसे आगे और उनसे बाहर कुछ हो दिखाई दे ...
    प्रेम के आगे कुछ नहीं ...

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  6. बहुत सुंदर रेवा जी |

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  7. beautiful poem.....keep it up Rewa

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