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Tuesday, May 5, 2015

बेमानी



ज़ुबान पर नाम तो तेरा अब भी आता है
पर जाने क्यूँ ये लब खामोश रहते हैं ,

प्यार तो तुझ पर अब भी आता है
पर जाने क्यूँ ये दिल बेवफाई की चादर ओढ़ लेता है ,

ख्वाबों में तेरा अक्स अब भी नज़र आता है
पर जाने क्यूँ ये नज़रों का धोखा लगता है ,

आदत सी हो गयी है यूँ जज़्बातों को कुचलने की
जाने क्यूँ ये प्यार अब बेमानी सा लगता है।

रेवा

14 comments:

  1. जब प्रेम बदल जाता है तो बेमानी सा लगने लगता है ...

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  2. shukriya Digamber ji hamesha aap ka blog par aana padhna aur comment karna accha lagta hai ....margdarshan karte rahein....shukriya

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  3. कोमल भावनाओं से युक्त हृदयस्पर्शी प्रस्तुति ! बहुत सुन्दर !

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  4. सुंदर जज़्बात, बेहतरीन प्रस्तुति :)

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  5. प्यार बेईमानी सा लगता है.....लाजवाब प्रस्तुति।

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  6. दिल के गहराई से निकले शब्द बहुत प्रभावी है !
    वही होता है जो निर्णायक चाहता है !

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  7. दिल की गहराइयों से लिखे शानदार शब्द हैं आपके रेवा जी

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  8. क्या खूबसूरत अंदाज़ है. मन को उभरानेवाली एक दिलकश रचना :))

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  9. बहुत शानदार प्रस्तुति थी

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  10. शुक्रिया राजीव जी

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