प्यार शब्द खुद मे इतना प्यारा है की इसे किसी परिभाषा की ज़रूरत नहीं ……ये एक एहसास है जो बस महसूस किया जा सकता है,पर इसके साथ ये भी सच है की प्यार की बड़ी बड़ी बातें सभी लोग कर लेते है……पर सच्चा प्यार बहुत कम लोगों के नसीब मे होता है……ये भी माना के प्यार दर्द भी देता है पर अगर ये सच्चा है तो संतुष्टि भी देता है…ऐसा प्यार हमे प्रभु के और करीब ले जाता है …ये मेरी भावनाएं और एहसास , इन्हीं को शब्द देने की कोशिश है मेरी …....
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Wednesday, June 21, 2017
Wednesday, June 14, 2017
पैंतालीसवां साल 10
पैंतालीस की होने को आई
पर आज भी
मैं अपने मन का
नही कर पाती हूँ ,
चाहती हूं अलसाई सी
सुबह अख़बार और चाय
के साथ बिताना
पर हर सुबह भाग दौड़ में
बीत जाती है ,
दोपहर होते ही
मन अमृता प्रीतम की
नज़्में पढ़ने को करता है ,
पर कभी काम तो कभी
पारिवारिक जिम्मेदारी
हाथ पकड़ लेती है ,
शाम ढले कॉफी की
चुस्कियों के साथ दोस्तों
का साथ चाहती हूं
पर शामें अक़सर
बजट और बच्चों के
भविष्य की चिंता में
बिता देती हूं ,
बस रात अपनी होती है
पर सपने भी कहाँ
हमारे मन मुताबिक आते हैं ,
पैंतालीस की होने को आई
पर आज भी
मैं अपने मन का
नही कर पाती हूँ ,
पर एक ज़िद
खुद को करने की छूट दी है
कि एक दिन मैं अपने मन की
जरूर पूरी करुँगी !!
पर आज भी
मैं अपने मन का
नही कर पाती हूँ ,
चाहती हूं अलसाई सी
सुबह अख़बार और चाय
के साथ बिताना
पर हर सुबह भाग दौड़ में
बीत जाती है ,
दोपहर होते ही
मन अमृता प्रीतम की
नज़्में पढ़ने को करता है ,
पर कभी काम तो कभी
पारिवारिक जिम्मेदारी
हाथ पकड़ लेती है ,
शाम ढले कॉफी की
चुस्कियों के साथ दोस्तों
का साथ चाहती हूं
पर शामें अक़सर
बजट और बच्चों के
भविष्य की चिंता में
बिता देती हूं ,
बस रात अपनी होती है
पर सपने भी कहाँ
हमारे मन मुताबिक आते हैं ,
पैंतालीस की होने को आई
पर आज भी
मैं अपने मन का
नही कर पाती हूँ ,
पर एक ज़िद
खुद को करने की छूट दी है
कि एक दिन मैं अपने मन की
जरूर पूरी करुँगी !!
रेवा
Monday, June 5, 2017
खुद से आशिकी
ज़िन्दगी मे पहली बार
ऐसा हुआ की
मुझे खुद से प्यार हो गया .......
सच मानो
ये एहसास
पहले कभी नहीं हुआ !!!
आह ! पहले मैं कहाँ थी ?
पहले क्यूँ नहीं देखा
इस लड़की को
अपने अंदर .......
हमेशा थी वो मेरे
आस पास फिर भी
ढूंढती रही
किसी और मे ,
अब जो मिल गयी है
तो जाने न दूँगी ,
प्यार से इसे प्यार करुँगी
हर पल खुद को
याद दिलाती रहूँगी
ताकि कायम रहे
खुद से खुद की आशिकी !!
रेवा
Friday, June 2, 2017
चाँद
रोज़ की तरह
आज फिर चाँद ने
खिड़की पर आ कर
आवाज़ लगायी ,
पर आज मुझे
वहाँ न पाकर
आश्चर्यचकित था ,
रोज़ टकटकी लगा कर
इंतज़ार करने वाली
ढेरों बातें करने वाली
आज कहाँ गायब हो गयी ?
उसे क्या पता था
आज वो अपने
चाँद को छोड़
अपने प्रियतम की बाँहों
मे झूल रही है ,
आज चाँद ने
औरों की तरह
उसे भी बेवफा
करार कर तो कर दिया,
पर आज चाँद से
ज्यादा खुश
और कोई नहीं था ,
आखिर उसकी
प्रेयसी अपने प्यार
के साथ जो थी ...........
रेवा