अलसाई सी शाम
कॉफ़ी की कप से
उठता धुआं
उसकी ख़ुश्बू
मन को
संतुष्टि से भर
देती है .....
लगता है ऐसे लम्हे
मे वही एक कप
सबसे जरूरी है ......
पर जब मन ऐसा हो
तो अनायास ही
तुम्हारी याद आ जाती है
तुम्हारी बातें कॉफ़ी
कि तरह घुलती जाती है
धीरे धीरे मेरे ज़ेहन मे
उसकी ख़ुश्बू की तरह
भर लेती है मुझे अपने
आगोश में
कितने एक जैसे हो न
तुम दोनो ......
रेवा
कॉफ़ी की कप से
उठता धुआं
उसकी ख़ुश्बू
मन को
संतुष्टि से भर
देती है .....
लगता है ऐसे लम्हे
मे वही एक कप
सबसे जरूरी है ......
पर जब मन ऐसा हो
तो अनायास ही
तुम्हारी याद आ जाती है
तुम्हारी बातें कॉफ़ी
कि तरह घुलती जाती है
धीरे धीरे मेरे ज़ेहन मे
उसकी ख़ुश्बू की तरह
भर लेती है मुझे अपने
आगोश में
कितने एक जैसे हो न
तुम दोनो ......
रेवा
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (05-07-2017) को "गोल-गोल है दुनिया सारी" (चर्चा अंक-2656) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
abhar mayank ji
Deleteभावनाओं को सजीव करते शब्द बोलतीं पंक्तियाँ ,सुन्दर !आभार "एकलव्य"
ReplyDeleteशुक्रिया dhruv जी
Deleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteशुक्रिया राजीव जी
Deleteक्या बात है
ReplyDeleteशुक्रिया सदा जी
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteshukriya
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