आँखों से अब
आँसू नहीं बहते
जज़्ब हो गए हैं
कोरों मे ........
दिल भी अब
दुखता नहीं
बांध दिया है
सिक्कड़ों से ........
एहसास अब
पहले से नहीं
उठते मन मे
उन्हें बाहर
का रास्ता दिखा
दिया है ........
उम्मीदें भी
नहीं जगती अब
उन्हें गहरी नींद
सुला दिया है .......
एक शून्य की
चादर ओढ़
उस पर
मुस्कान का
इत्र लगा दिया है ........
बोलो अब
दिखती हूँ न मैं
"सुघड़ गृहणी "
रेवा
सुंदर शब्द सृजन।
ReplyDeleteशुक्रिया कमलेश ji
Deleteसार्थक रचना
ReplyDeleteशुक्रिया onkar जी
Deleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteशुक्रिया सुशील ji
Deleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "सात साल पहले भारतीय मुद्रा को मिला था " ₹ " “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआभार blog bulletin का
Deleteसमाज की स्त्री से की गई अपेक्षाओं पर गहरा कटाक्ष !
ReplyDeleteशुक्रिया मीना जी
Deleteसमाज ने सुघड़ गृहिणी की यही व्याख्या की है और आपने इसे शब्दो के माध्यम से बहुत ही अच्छे से व्यक्त किया है।
ReplyDeleteशुक्रिया ज्योति जी
Deleteजितनी ज़िंदगानियाँ उतने फ़साने। अपना -अपना आसमान तलाशने की मुहिम जीवन को श्रेठत्तर होने के मार्ग बनाती है ,स्वतंत्रता के आयाम विकसित करती है। नारी जीवन को बंधनों में जकड़ने की सोच आज भले ही अचेत है किन्तु अपना असर कहीं न कहीं दिखाती ज़रूर है।
ReplyDeleteउत्तम प्रस्तुति। ग्रहणी की मनोदशा को उभारती सुन्दर रचना। रचना में एक शब्द "बहार " असमंजस पैदा कर रहा है। आप स्पष्ट करेंगी तो अच्छा होगा।
बाहर लिखना था बहार लिखा गया ,शुक्रिया आपकी टिप्पणी के लिए
Deleteजितनी ज़िंदगानियाँ उतने फ़साने। अपना -अपना आसमान तलाशने की मुहिम जीवन को श्रेठत्तर होने के मार्ग बनाती है ,स्वतंत्रता के आयाम विकसित करती है। नारी जीवन को बंधनों में जकड़ने की सोच आज भले ही अचेत है किन्तु अपना असर कहीं न कहीं दिखाती ज़रूर है।
ReplyDeleteउत्तम प्रस्तुति। ग्रहणी की मनोदशा को उभारती सुन्दर रचना। रचना में एक शब्द "बहार " असमंजस पैदा कर रहा है। आप स्पष्ट करेंगी तो अच्छा होगा।
सुघड़ स्त्री.....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर....
भावनात्मकता और कोमलता त्याग सुघड़ स्त्री बनना समाज की जरूरत हो गयी....
बहुत ही सुन्दरता से बयां करती नारी मन की बिवशता..
लाजवाब प्रस्तुति..
शुक्रिया sudha जी
Deleteएक-एक शब्द भावपूर्ण ...
ReplyDeleteसंवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता :)
शुक्रिया संजय जी
Deletekya baathai ji aisi kavitaye to bachpan me bahut parha karta tha. Ab Bhi milne lagi bahut khush hu
ReplyDeleteस्थिति अभी भी पूरी तरह बदली नहीं है ....गाँवो मे तो इससे भी बुरी है .... जब तक ऐसी स्थिति बनी रहेगी आप पढ़ते रहेंगे .....शुक्रिया पोस्ट पर आने और टिप्पणी करने के लिए
Deleteशुक्रिया digvijay ji
ReplyDeleteआभार मयंक जी
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