एक पिंजरे से निकाल
कर दूसरे पिंजरे में
कैद करने के लिए ही तो
आज़ाद किया जाता है
पंछियों को,
उन्हें गर खुला छोड़
दिया तो डर है कहीं
आज़ाद हो वो
अपनी मनमानी न
करने लग जायें,
अपने मन से खुले
कर दूसरे पिंजरे में
कैद करने के लिए ही तो
आज़ाद किया जाता है
पंछियों को,
उन्हें गर खुला छोड़
दिया तो डर है कहीं
आज़ाद हो वो
अपनी मनमानी न
करने लग जायें,
अपने मन से खुले
आकाश में विचरने
न लग जायें ....
न लग जायें ....
अरे पिंजरे में रहेंगी
तभी तो वो अपने
स्वामी के भरोसे
जीयेंगी
तभी तो वो अपने
स्वामी के भरोसे
जीयेंगी
वो देंगे तो खायेंगी
नहीं तो भूखे ही रहेंगी
उनका जब मन किया
उन्हें पिंजरे से निकाल
खेलेंगे
और फिर पिंजरे में
उनका जब मन किया
उन्हें पिंजरे से निकाल
खेलेंगे
और फिर पिंजरे में
कैद कर देंगे
ये क्रम सालों चलता
ये क्रम सालों चलता
रहता है
लेकिन सालों ऐसे
रहते रहते
वो अपनी उड़ान ही
भूल जातीं हैं
रहते रहते
वो अपनी उड़ान ही
भूल जातीं हैं
और यही तो सारा खेल है .....
रेवा
रेवा
सटीक रचना
ReplyDeleteशुक्रिया onkar जी
Deleteआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २६ फरवरी २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' २६ फरवरी २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीय माड़भूषि रंगराज अयंगर जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।
अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य"
आभार ध्रुव जी
Deleteतेरा बाबा
ReplyDeleteबूढे बाबा का जब चश्मा टूटा
बोला बेटा कुछ धुंधला धुंधला है
तूं मेरा चश्मां बनवा दे,
मोबाइल में मशगूल
गर्दन मोड़े बिना में बोला
ठीक है बाबा कल बनवा दुंगा,
बेटा आज ही बनवा दे
देख सकूं हसीं दुनियां
ना रहूं कल तक शायद जिंदा,
जिद ना करो बाबा
आज थोड़ा काम है
वेसे भी बूढी आंखों से एक दिन में
अब क्या देख लोगे दुनिया,
आंखों में दो मोती चमके
लहजे में शहद मिला के
बाबा बोले बेठो बेटा
छोड़ो यह चश्मा वस्मा
बचपन का इक किस्सा सुनलो
उस दिन तेरी साईकल टूटी थी
शायद तेरी स्कूल की छुट्टी थी
तूं चीखा था चिल्लाया था
घर में तूफान मचाया था
में थका हारा काम से आया था
तूं तुतला कर बोला था
बाबा मेरी गाड़ी टूट गई
अभी दूसरी ला दो
या फिर इसको ही चला दो
मेने कहा था बेटा कल ला दुंगा
तेरी आंखों में आंसू थे
तूने जिद पकड़ ली थी
तेरी जिद के आगे में हार गया था
उसी वक्त में बाजार गया था
उस दिन जो कुछ कमाया था
उसी से तेरी साईकल ले आया था
तेरा बाबा था ना
तेरी आंखों में आंसू केसे सहता
उछल कूद को देखकर
में अपनी थकान भूल गया था
तूं जितना खुश था उस दिन
में भी उतना खुश था
आखिर "तेरा बाबा था ना"
मेरी झोंपड़ी
ReplyDeleteईंट से ईंट जोड़ कर
महल बना लिए तुमने
पत्थरों को तराश
शहर बसा लिए तुमने ,
मेरी झोंपड़ी शायद
तेरी औक़ात के करीब नही
छनकर आती यह रोशनी
फक़त मेरी है तेरा शरीक नहीं .
बहुत ही सटीक रचना..
ReplyDeleteshukriya reena
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