स्त्री हूँ मैं
पर अबला नहीं हूँ
बंद कर दो मुझे
इस नाम से पुकारना
मुझे कमज़ोर लिखना,
मैं अपना मुकद्दर
ख़ुद लिखना जानती हूं
किसी से बराबरी की
कोई जद्दोजहद नहीं
साबित करने की कोई होड़ नहीं
मर्दों की अपनी जगह है
और मेरी अपनी
धरती पर ये दोनो
एक दूसरे के पूरक हैं
बार बार बराबरी की बातें कर
हम ये साबित करने पर तुले हैं की
हम कमतर है
न हम कमतर हैं न सर्वोच्च
हम तो ख़ुद में पूर्ण
ईश्वर के सुंदर सृजन में से एक हैं !!
पर अबला नहीं हूँ
बंद कर दो मुझे
इस नाम से पुकारना
मुझे कमज़ोर लिखना,
मैं अपना मुकद्दर
ख़ुद लिखना जानती हूं
किसी से बराबरी की
कोई जद्दोजहद नहीं
साबित करने की कोई होड़ नहीं
मर्दों की अपनी जगह है
और मेरी अपनी
धरती पर ये दोनो
एक दूसरे के पूरक हैं
बार बार बराबरी की बातें कर
हम ये साबित करने पर तुले हैं की
हम कमतर है
न हम कमतर हैं न सर्वोच्च
हम तो ख़ुद में पूर्ण
ईश्वर के सुंदर सृजन में से एक हैं !!
रेवा
बेहतरीन...
ReplyDeleteसादर
शुक्रिया यशोदा जी
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरूवार 12 अप्रैल 2018 को प्रकाशनार्थ 1000 वें अंक (विशेषांक) में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
आभार रविन्द्र जी
Deleteआभार आपका
ReplyDeleteसहमत हूँ आपकी बात से ...
ReplyDeleteबहुत खूब....
ReplyDeleteवाह!!!
बहुत सुंदर
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