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Tuesday, April 10, 2018

स्त्री हूँ मैं






स्त्री हूँ मैं
पर अबला नहीं हूँ
बंद कर दो मुझे
इस नाम से पुकारना
मुझे कमज़ोर लिखना,
मैं अपना मुकद्दर
ख़ुद लिखना जानती हूं
किसी से बराबरी की
कोई जद्दोजहद नहीं
साबित करने की कोई होड़ नहीं
मर्दों की अपनी जगह है
और मेरी अपनी
धरती पर ये दोनो
एक दूसरे के पूरक हैं
बार बार बराबरी की बातें कर
हम ये साबित करने पर तुले हैं की
हम कमतर है
न हम कमतर हैं न सर्वोच्च
हम तो ख़ुद में पूर्ण
ईश्वर के सुंदर सृजन में से एक हैं !!


रेवा 

8 comments:

  1. बेहतरीन...
    सादर

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    1. शुक्रिया यशोदा जी

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  2. नमस्ते,
    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरूवार 12 अप्रैल 2018 को प्रकाशनार्थ 1000 वें अंक (विशेषांक) में सम्मिलित की गयी है।

    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

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  3. सहमत हूँ आपकी बात से ...

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  4. बहुत खूब....
    वाह!!!

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  5. बहुत सुंदर

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