जब ब्याह हो जाता है
अपना दिल जान
न्योछावर कर देती है स्त्री,
अपनी हर जिम्मेदारी निभाती
रहती है
रहती है
पर जब सालों बाद भी
उसे वो प्यार वो सम्मान नहीं मिलता
जिसकी वो हक़दार है और
जो सबसे कीमती है उसकी नज़र में
तो उदास हो जाती है अंदर से ,
दिल में एक खाली कोना
बन जाता है
और उदास हँसी उसकी नीयती,
कभी तो बगावत कर देती है
कभी नसीब मान समझौता भी
करती है ,
पर जब कोई उसे ऐसा मिलता है
जो भीड़ में थाम लेता है उसे
बिन कहे सुने ही, सब समझ लेता है
उसकी बातें, उसकी ख्वाहिशें
उसका सम्मान करता है
अपनापन देता है
तो अनायास ही वो
उसकी तरफ झुकने लगती है
उससे अपनी हर बात
साझा करने लगती है,
लेकिन जीवन में आदमी
का अर्थ है
बाप भाई पति या बेटा
फिर इस रिश्ते को
किस आसन पर बैठाये ??
दोस्त या सखा
लेकिन नहीं बचपन से तो यही
सीखा है
मर्द दोस्त नहीं हो सकता
और इसलिए वो हर पल
इस अपराध बोध के साथ जीती है की
वो अपने पति और परिवार
के साथ न्याय नहीं कर रही,
जबकि वो अपने हर रिश्ते की
सीमाओं से वाकिफ है
यहीं से शुरू होते हैं सवाल
जरूरी है क्या की वो इसे कोई नाम दे?
क्या बिना नाम कोई
रिश्ता अपने मायने खो देता है,
और वो औरत है दूसरा मर्द
इसलिए क्या रिश्ता नापाक
हो जाता है ?
ऐसे और भी कई सवाल हैं
क्या जवाब है हम में से किसी के पास ????
शायद नहीं
पर मैं अपनी बात कहना चाहूँगी
मेरा ये मानना है की
रिश्ते कभी नापाक नहीं होते
नापाक होती है सोच।
रेवा
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 08 मई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteशुक्रिया बहना
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (08-05-2017) को "घर दिलों में बनाओ" " (चर्चा अंक-2964) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार मयंक जी
Deleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteजब एक स्त्री हर रिश्ते से वाकिफ़ है तो फिर रिस्ते नापाक नहीं हो सकते..
ReplyDelete25 वीं पंक्ति में आसान की जगह शायद आसन आये।
एक अनछुए पहलू को छुअन दी है आपने।
शुक्रिया ,ख़ास कर टाइपिंग की ग़लती की और ध्यान आकर्षित करने के लिए
Deleteबहुत ही मर्मस्पर्शी प्रश्न आदरणीय रेवा जी -- औरत भी एक इंसान है उसे भी अपने रूहानी साथी को चुनने का हक़ है | सचमुच रिश्ते नहीं बल्कि सोच में दोष होता है | एक परित्यक्त से विषय को सजाया है आपने रचना में बड़े ही स्पष्टता से | सादर --
ReplyDeleteशुक्रिया रेनू जी
Deleteनिमंत्रण
ReplyDeleteविशेष : 'सोमवार' २१ मई २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक के लेखक परिचय श्रृंखला में आपका परिचय आदरणीय गोपेश मोहन जैसवाल जी से करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।