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Thursday, May 24, 2018

मोहब्बत का सफ़र

आज तुम आये मेरे पास
और कहा की
जो तुमने लिखा है न
"तुझे मेरी आरज़ू तो है
पर मोहब्बत नहीं "

ऐसा नहीं है
मैंने कभी मोहब्बत के
बारे में सोचा ही नहीं
य कह लो समय नहीं मिला
तुम मेरी चाहत को ही
मोहब्बत समझ लो न 

असल में चाहत और
मोहब्बत में मैं अंतर
नहीं कर पाता हूँ
और अगर कर भी लूं
तो मुझे प्यार जताना
या  दिखाना नहीं आता
पर प्यार मैं तुमसे ही करता हूं
बस इतना कह सकता हूँ 

मैंने कहा, जानते हो 
तुमने आज बस इतनी सी
बात कह कर
ता उम्र अपना साथ
मेरे नाम कर दिया
यही तो चाहा था मैंने
कभी कुछ तो बोलो
इस बारे में मुझसे
चलो अब मुझे 
कोई शिकायत नहीं
तुमसे
तुम मैं और मोहब्बत
अब साथ साथ सफ़र करेंगे

रेवा 

#मोहब्बत 

3 comments:

  1. आभार मयंक जी

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  2. चाहतों के ही तो मेले हैं मोहब्बतों के बाज़ार में.
    बेहद लाजवाब रचना.

    हाथ पकडती है और कहती है ये बाब ना रख (गजल 4)

    .

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