नज़रें कितना कुछ बयां करती हैं
कितने एहसास भरे रहते हैं उनमें
कुछ एहसासों को शब्दों में
लिखने की एक कोशिश
विरहन
जब अपने प्रियतम
के आने की खबर पा कर
उसके पास जाती है
और उसे नज़र भर देखती है
प्यार
जब पति पत्नी के
कंधे पर प्यार से हाथ
रखता है और पत्नी
उसे निहारती है
व्यथा
जब एक विधवा
दूसरी को देखती है
अपने जैसे दुःख से
गुजरते हुए
ममता
माँ रोती भी है
हंसती भी है
जब बेटी दुल्हन
बनती है
संतुष्टि
जब अपने भूखे बच्चे को
खाना खाते हुए
माँ देखती है
बचपना
बरसात को देख
भीगते उछलते
बड़ी उम्र के लोगों की
शरारती नज़रें
तृप्ति
भूखे की थाली में
भोजन और प्यासे
को पानी
वो तृप्ति भरी नज़र
कुटिल
ये सबसे पहले
नज़रें बता देती हैं
शब्द और कार्य
देखने की जरूरत
ही नहीं पड़ती .......
रेवा
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteshukriya
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (02-07-2018) को "अतिथि देवो भवः" (चर्चा अंक-3018) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
आभार
Deleteनजर भी किस किस रूप अलग अलग होती हैं यह बहुत ही खुबसुरती से व्यक्त किया हैं आपने।
ReplyDeleteशुक्रिया jyoti ji
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