मत करो अब
मुझसे वो पहली सी
उम्मीद की
नहीं दे पाऊँगी
अब कुछ भी तुम्हें ...
जानते हो जब दर्द हदें
तोड़ देता है
तो बदले में
बहुत कुछ ले भी लेता है
मुस्कान तो आज भी
खेलती है होठों पर
लेकिन सुकून -ए- दिल
नहीं है
आंसुओं का इन आँखों में
काम नहीं अब कोई
पर आँखें अब शरारत से
मुस्काती नहीं है
गाती मैं आज भी हूँ
पर मस्ती में
गुनगुनाना भूल गयी हूँ
आईना देख संवरती
अब भी हूँ
पर उसमे तुम्हारा अक्स देख
शर्मा कर नज़रें नहीं झुकाती
लटें अब भी उलझती हैं मेरी
पर उन्हें सुलझाने के
बहाने तुम्हें पास
नहीं बुलाती
बरसात मुझे अब भी
उतनी ही पसंद है
पर तुम्हारा हाथ पकड़े
बूंदों को महसूस करने की
इच्छा नहीं होती
रिश्ता तो आज भी है
पर परवाह और प्यार की जगह
जिम्मेदारी ने ले ली है...
रेवा
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (18-07-2018) को "समय के आगोश में" (चर्चा अंक-3036) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
शुक्रिया
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteशुक्रिया अनुराधा जी
Deleteवाह अनुपम सृजन
ReplyDeleteशुक्रिया सदा जी
Deleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन इमोजी का संसार और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDeleteप्यार अक्सर ज़िम्मेदारी का आवरण भी ओढ़ता है जो प्रेम को सांसें देता है ...
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण रचना है ...
अह्हा ....बहुत दिनों बाद अअप आए ....शुक्रिया
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