औरत अक्सर पुल होती है
अपने बचपन के घर और
अपने शादी के बाद के घर के बीच
अपनी मायके की मान्यताओं
और ससुराल की मान्यताओं के बीच
औरत अक्सर पुल होती हैं
अपनी आकाँक्षाओं और
अपने द्वारा किये समझौते के बीच
अपने लिए सम्मान की चाह
और ख़ुद को मिले अपमान के बीच
औरत अक्सर पुल होती है
अपनी ख़ुद की जकड़ी हुई सोच
और अपने बच्चों की सोच के बीच
अपनी तबियत और
घर के रोज़मर्रा के काम के बीच
औरत अक्सर पुल होती है
प्यार की चाह और
एहसासों के तड़प के बीच
औरत पुल ही नहीं दहलीज़ होती है
अंदर और बाहर की दुनिया के बीच......
#रेवा
#औरत
#रेवा
#औरत
औरत ही है जो पुल होती है दो घरों के बीच ...
ReplyDeleteमायके की चहक और ससुराल की महक...
बचपन की यादें और सपने पलते है मायके में..
और पूरा करने की जद्दोजहद होती है ससुराल में ....
सच कहा आपने....शुक्रिया
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteशुक्रिया लोकेश जी
Deleteआभार मयंक जी
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeletethank u di
Deleteऔरत अक्सर पुल होती है
ReplyDeleteप्यार की चाह और
एहसासों के तड़प के बीच
औरत दहलीज़ होती है
अंदर और बाहर की दुनिया के बीच......
सोचने को विवश करती आपकी यह रचना मुझे प्रभावित कर गई। शुभकामनाएं।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है ....रचना को यही तो काम है ....बहुत शुक्रिया
Deleteसही कहा
ReplyDeleteशुक्रिया onkar जी
Deleteऔरत अक्सर पुल होती है
ReplyDeleteप्यार की चाह और
एहसासों के तड़प के बीच बेहद खूबसूरत रचना
shukriya Anuradha ji
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