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Monday, August 27, 2018

राखी (लघु कथा )


आज राखी है मुन्नी ने बोला  " भइया इस बार गुड़िया लूँगी ......पिछली बार भी आपने बहला फुसला कर कुछ न दिया था मुझे " गणेश बोला इस बार पक्का और मुस्कुरा दिया , उसने फूल बेच कर रुपये जो जोड़ रखे थे।

लेकिन सुबह मुन्नी को अचानक बुखार आ गया, डॉक्टर और दवा के चक्कर मे सारे पैसे चले गए.......  फिर भी उसने हार न मानी फिर से फूल बेचने निकल पड़ा, उसे विश्वास था की शाम होते तक उसके सारे फूल बिक जाएंगे। और वो मुन्नी को प्यारी सी गुड़िया देगा।

पर अचानक उनके कसबे में अफरा तफरी मच गयी ....सरकार के किसी बात का विरोध करने कुछ पार्टी के लोगो निकल पड़े थे सड़कों पर … अब फूल बिकेंगे नहीं तो  वो मुन्नी की इच्छा कैसे पूरी कर पाएगा वो सोचने लगा .... हताशा से आँखें भींग गयी …पर वादा किया था बहन से .....कुछ तो करना ही था, आखिर उसने एक जुगत लगायी .....गीली मिट्टी से गुड़िया बना कर उसे सुखाया और सजा धजा कर रख लिया ......राखी बंधने के बाद जब उसने गुड़िया मुन्नी को दी तो उसकी आँखों की चमक देख कर गणेश को लगा आज उसकी राखी सार्थक हो गयी।

#रेवा


2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (28-08-2018) को "आया भादौ मास" (चर्चा अंक-3077) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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