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Saturday, September 1, 2018

इमरोज़


इमरोज़ की 
तरह होना
नामुमकिन है

लफ़्ज़ों को
रंगों में घोल
यूँ इश्क की
चित्रकारी करना
नामुमकिन है

अपने इश्क को
किसी और के इश्क
में खोए देखकर भी
उससे इश्क करना
नामुमकिन है

अपनी पीठ पर हर रोज़
किसी और का नाम
लिखा जाना
फिर भी हंसते हंसते
रास्ता तय करना
नामुमकिन है

यूँ सालों किसी की
यादों के सहारे
उसके एक एक
सामान को
सहेज कर रखना
नामुमकिन है

इमरोज़ बनना
नामुमकिन है
पर इश्क करना
मुमकिन है 

#रेवा
#अमृता के बाद की नज़्म

12 comments:

  1. वाह बहुत ही सुन्दर रचना

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  2. बहुत ही सुन्दर रेवा जी

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (02-09-2018) को "महापुरुष अवतार" (चर्चा अंक-3082) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    श्री कृष्ण जन्माष्टमी की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. वाह !!!!इमरोज को बखूबी परिभाषित कर उनके विलक्षण प्रेम पर बहुत सुंदर लिखा आपने | दुनिया में वहां प्रेम की समाप्ति मानी जाती है जहाँ से अमृता का इमरोज से प्रेम शुरू हुआ | बेहतरीन रचना आदरणीय रेवा जी | सादर --

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    1. बहुत शुक्रिया आपका

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  5. सुन्दर रचना

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