जाने क्यों
इतनी बड़ी हूँ मैं
पर जब बात तुम्हारी
आती है तो बच्चों सी
हो जाती हूँ
पर जब बात तुम्हारी
आती है तो बच्चों सी
हो जाती हूँ
जाने क्यों
तुम अगर मेरी बात
ठीक से न सुनो तो
चिढ़ जाती हूँ
फ़ोन न लो तो गुस्सा
तुम अगर मेरी बात
ठीक से न सुनो तो
चिढ़ जाती हूँ
फ़ोन न लो तो गुस्सा
हो जाती हूँ
और अगर दो बार ऐसा
करो तब तो भयंकर गुस्सा
तुम्हें फोन पर
तीन बार
ब्लॉक ब्लॉक ब्लॉक
लिख कर जाने कैसी
संतुष्टि मिलती है मुझे
और अगर दो बार ऐसा
करो तब तो भयंकर गुस्सा
तुम्हें फोन पर
तीन बार
ब्लॉक ब्लॉक ब्लॉक
लिख कर जाने कैसी
संतुष्टि मिलती है मुझे
जाने क्यों
कभी कभी तुमसे
अपनी हर बात साझा
करना चाहती हूँ
क्या कर रही हूँ ?
कौन सा गीत ज्यादा
सुन रहीं हूँ ?
कौन सी कविता पर
काम कर रही हूँ ?
क्या पढ़ना चाहती हूँ ?
यहां तक की कौन से
रंग का कुर्ता पहन रखा है
कभी कभी तुमसे
अपनी हर बात साझा
करना चाहती हूँ
क्या कर रही हूँ ?
कौन सा गीत ज्यादा
सुन रहीं हूँ ?
कौन सी कविता पर
काम कर रही हूँ ?
क्या पढ़ना चाहती हूँ ?
यहां तक की कौन से
रंग का कुर्ता पहन रखा है
जाने क्यों
फिर अगले ही पल
ख़ुद को चपत लगा कर
कहती हूँ पागल..
पर मन तो फिर भी
मन है न
ऐसा चाहता है
तो क्या करूँ बोलो ??
फिर अगले ही पल
ख़ुद को चपत लगा कर
कहती हूँ पागल..
पर मन तो फिर भी
मन है न
ऐसा चाहता है
तो क्या करूँ बोलो ??
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-10-2018) को "जीवन से अनुबन्ध" (चर्चा अंक-3124) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार
Deleteसुन्दर रचना ....
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteशुक्रिया
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