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Monday, October 15, 2018

हमसफ़र



गर तुम चाहो
मेरे करीब आना
मुझे समझना
मुझे पढ़ना
तो ज़रिये
मिल ही जायेंगे
पर तब
जब तुम चाहो 

तुम गर खुद में
ही सिमटे रहे
तो पढ़ना तो दूर
मुझे समझना
भी मुमकिन नहीं है

कभी देखा है
मेरे चेहरे को गौर से
मेरी आँखों की
भाषा क्या समझ
आती है तुम्हें
नहीं न

असल में
जीवन की आपा धापी में
हम जीवन साथी का साथ
उसके प्यार, उसकी कद्र
इन सब बातों को
नज़रंदाज़ कर देते हैं

ये सारी चीज़ें
टेकन फ़ॉर ग्रांटेड की
सूची में जो आते हैं
और जब दोनों में से एक
नहीं रहता / रहती
तो हाथ मलने के अलावा
कुछ बचता नहीं....

#रेवा 
#हमसफ़र 

4 comments:

  1. बहुत अच्छी रचना

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (17-10-2018) को "विद्वानों के वाक्य" (चर्चा अंक-3127) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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