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Tuesday, June 18, 2019

घर




उस मकान को देख रहे हैं न 
उसको घर बनाने का सच
क्या पता है आपको ??
कितनी बहस
कितने आँसू
कितने तकरार
कितने अरमान
कितने रत जगे लगे हैं

सारी जिंदगी नौकरी
करने वाले की
पसीने से जमा की हुई
पूंजी लगी है
बूढ़े बाप का सपना
बीवी का अरमान
बच्चों का ख़्वाब
बहनों का आशीर्वाद
लगा है
उस एक मकान को
घर बनाने में
सालों भगवान के आगे
प्रार्थना के दीप लगे हैं
इस एक सपने को
पूरा करने में अनगिनत
ख़्वाहिशों को यूँही
हँसते हुए क़ुर्बान किया है

उस घर का हर कोना
इबादत है दुआ है
भावनाओं का सागर है
इसलिए वो सिर्फ
ईट सीमेंट का घर नहीं
वो एहसासों का मन्दिर है

#रेवा

Friday, June 14, 2019

पालनहार




तू ही तो पालनहार है
तू ही तो खेवनहार है
पर तू है कहाँ

सुना है
तू कण कण में है
बच्चों के मन में है
तो फिर उनकी रक्षा
क्यों नहीं करता ??

ईमानदार निश्छल
इंसान की तू सुनता है
ऐसा सुना था
पर वो खून के आँसू
रोते हैं
तू उनकी सुनता क्यों नहीं ??

सुना है तुझे सिर्फ दिल से
याद करो, आडम्बरोँ से तू
खुश नहीं होता
फिर अमीर को और अमीर
और ग़रीब को और ग़रीब
क्यों बना रहा है ?

सुना है तू उनकी मदद
करता है जो अपनी
मदद ख़ुद करते हैं
तो आज बता क्या
लड़कियाँ कभी कुछ
नहीं करती
अपनी मदद नहीं करतीं
फिर क्यों अत्याचार
बढ़ रहें हैं उन पर

अगर तू है कहीं तो आ
आज मेरे सारे सवालों
के जवाब दे कर जा
वर्ना मैं नहीं मानती
की तू कहीं है

#रेवा

Wednesday, June 12, 2019

आँखें



आँखें बहुत कुछ 
देखती है कहती हैं
जो देखती है समझती हैं 
उससे चहरे के भाव
बदलते हैं
आँखों की भाषा
बहुत मुश्किल है
पर गर मन से पढ़ा जाए तो
पढ़ना बहुत आसान है


यहाँ मेरे जीवन से जुड़ी
तीन परिस्थितियों का
वर्णन करना चाहूँगी
जो मुझे कभी भूलती नहीं
देखी थी मैंने माँ की आँखें
बेटी को दुल्हन
रूप में हौले हौले चलते
जब निहार रही थी
एक पल आँसू
बिटिया के जाने का दुख
पर दूजे पल आँसू मिश्रित हंसी
जैसे ख़ुद से कह रही हो
रो मत बिटिया की खुशी के दिन है

देखी थी मैंने वो दो
आँखें जो पति
के प्यार करने पर
उन्हें जीवन से
भरपूर हो निहार
रही थी
ये उन आँखों को भी
पता नहीं था कुछ पल
बाद ही जिसे वो निहार
रही है वो रहेगा ही नहीं

देखी थी वो आँखें
जो पति के जाने
के बाद ख़ामोश
सूनी, मृत समान
हो गयी थीं
वक्त के साथ
अब समझदारी ओढ़े
जीवंत हो गयी है

आज फिर देखी दो जोड़ी
आँखें पति को
अंतिम विदाई देते
आँखों से मनुहार करते
प्यार जताते और फिर
आँसुओं को जज़्ब करते
जैसे कह रही हो
तुम अब आँखों में बस गए हो
आँसू गिरा कर तुम्हें
आँखों से बहाना नहीं चाहती

Saturday, June 8, 2019

साहिर और अमृता


अमृता का प्यार
सदाबहार
उसके गले का हार
साहिर बस  साहिर

उसका चैन उसका गुरूर
उसकी आदत उसकी चाहत
उसका सुकून उसकी मंज़िल
साहिर बस साहिर

उसकी ताकत उसकी हिम्मत
उसकी लेखनी उसकी कहानी
साहिर बस साहिर

उसका दिल उसकी सांसें
उसकी जिंदगी उसकी बंदगी
उसकी आशिकी उसकी ख़लबली
साहिर बस साहिर

फिर क्या हो गयी बात
क्यों छोड़ दिया था साथ
यह दरार यह दूरी
यह तन्हाई यह रुस्वाई
यह बेबसी यह मजबूरी
यह खटास यह अलगाव

क्या यही था किस्मत का लिखा
क्या यही था अंत दोनों का
क्या यही थी जुस्तजू उनकी
क्या यही थी आरजू़ उनकी
या ग़लतफहमी
या शक
या आत्म सम्मान का 
पड़ा कोई रोड़ा
या हालात की मार 

जो भी थी बात
वो कभी पन्नों ने दर्ज नहीं किया
दुनिया ने महसूस नहीं किया
लोगों के बीच आया नहीं
किसी ने सोचा नहीं
किसी ने बताया भी नहीं

वो दो होते हुए भी एक थे
एक रहे जीवन भर
जीते रहे एहसासों में 
एक दूजे के लिए
संगसंग आखिरी दम तक
अमृता का प्यार साहिर तक
जीना साहिर तक
मरना साहिर तक
होना साहिर तक
मोहब्बत और साहिर के बीच
केवल अमृता।

Tuesday, June 4, 2019

कैसे लिखूं कविता





कैसे लिखूं कविता
क्या लिखूं की
गरीब माएं मजबूरी में
बेटियों को धन्धे पर
लगा देती हैं 
ताकि पेट भरता रहे

क्या लिखूं की
कूड़े के ढेर से चुन कर
सड़ी गली चीज़ें खाते हैं
बच्चे ताकि उनकी
भूख मिट सके

क्या लिखूं की
फेक दी जाती है बेटियाँ
पैदा होते ही
या कभी कभी पैदाइशी
से पहले गिरा दी जाती हैं

क्या लिखूं की
होते हैं बलात्कार रोज़
अटे पड़े हैं अखबार
इन खबरों से
शाम को जब तक बेटियाँ
घर न आ जाएं
हर पल कई मौत
मरते हैं घर वाले

क्या लिखूं की
आरक्षण , बेरोज़गारी
मार रही है
युवाओं को

या ये लिखूं की
पैसा पैसा और बस पैसा
कमाने की होड़ में
जीना भूल रहें है लोग

पर इन सब के बावजूद
आज भी इंसानियत कायम है
प्यार कायम है
और इसी वजह से चल रही है
ये दुनिया
तो बस मैं यही लिखना चाहती हूं