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Sunday, April 19, 2009

तुम हो....

जब हवा का झोंका मुझे होले से स्पर्श करता है 
तो लगता है के तुम हो ,


जब हवा का झोंका मेरे बालों को सहलाता है
तो लगता है के तुम हो ,


जब हवा का झोंका मेरे आंचल से खेलता है
तो लगता है के तुम हो ,


जब हवा का झोंका मेरे कानों को छू कर जाता है
तो लगता है तुमने हौले से कुछ कहा है ,


ये कैसे जज्बात है, ये कैसे  एहसास है
जो बस तुम्हे ही ढूंढते है ,तुम्हे ही महसूस करते है हर जगह /


बस तुम्हे ही ....


रेवा 

6 comments:

  1. कल 31/10/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. yashwant ji bahut bahut shukriya apka

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  3. कोमल भावों से सजी रचना ...सुन्दर

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  4. सुन्दर रचना....
    सादर...

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  5. खूबसूरत कोमल अहसास

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