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Friday, August 20, 2010

बिता वक़्त लौट के ना आये

अपने चारों तरफ एक दिवार सी खड़ी
कर ली है मैंने.....कोशिश है की एक
भी एहसास बहार न जा पाए .....
तू जैसा देखना चाहता है वैसा ही देख
पाए मुझे .....पर मेरे अन्दर क्या
चल रहा है ,वो न दिख पाए तुझे
क्युकि अब तेरे पास शायद
वक़्त नहीं जो तू पढ़ पाए मुझे ,
मैं भी अब समझ चुकी हूँ की
लाख कोशिश कर लूँ पर

बिता वक़्त लौट के कभी ना आये ,
थोड़ी घुटन होगी जरूर ...रूउंगी
दुआ मांगूगी फ़िज़ूल ........
पर वक़्त के साथ समझ जाउंगी
यह बात ......ना तू समझेगा
ना बदलेंगे तेरे हालात .....
पर फिर भी खुश रहूंगी के
तू खुश है......इस से बढ़ कर
मेरे लिए कोई नहीं है सौगात ........

एक प्रेयसी (रेवा)



4 comments:

  1. ........ ...
    अच्छा है ....
    अन्दर की भावनाएं
    शब्दों का विन्यास
    काव्य शैली ....
    !!

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  2. बिखरे हुए आंसुओं को अंजुल मै नहीं समेटा जाता ,
    गर हो सके तो यादों का गुलदस्ता बना लेना तुम !

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  3. meri kavitaon ko aapka intzaar hai....

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  4. हालात से समझोता कर खुश रहना ही पड़ता है..

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