Pages

Friday, September 30, 2011

मन की व्यथा

कभी कभी 
मन मे विचार 
तो बहुत सारे
आते हैं ,
पर न उँगलियाँ 
न शब्द साथ 
देते हैं ,
लगता है
शब्दों की कमी
हो गयी है ,
या फिर ये 
उँगलियाँ लिख 
ही नहीं पा रही ,
या फिर मन 
जिस तेज़ी से 
दौड़ रहा है ,
जितना कुछ 
सोच  रहा है ,
उन सबको 
शब्दों मे 
ढाल पाना 
बहुत मुश्किल है ,

"बार बार लिखना चाहा ,
 जानना चाहा खुद को 
 पर न ही लिख पाई 
 न ही समझ पाई खुद को 
 मन की व्यथा 
 मन मे ही दबा कर 
 बस जलाती रही खुद को "

रेवा 


15 comments:

  1. खुद को समझ पाना वाकई बहुत मुश्किल काम है
    सुंदर रचना

    ReplyDelete
  2. बेहतरीन अभिव्यक्ति ..

    ReplyDelete
  3. deepak ji, rekha ji......bahut bahut shukriya

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना , बधाई

    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें

    ReplyDelete
  5. कभी कभी
    मन मे विचार
    आते हैं...
    रेवा जी इतनी
    सुन्दर-सुन्दर रचनाएँ
    कैसे रच लेती हैं ?
    ढेर सारी शुभकामनाएँ !!

    ReplyDelete
  6. kamleshji...shuklaji and sansac bahut bahut shukriya

    ReplyDelete
  7. bahut achchha likhtii hein aap ...
    shubhkaamnaayein ...

    ReplyDelete
  8. खुद को समझना जितना है जरुरी उतना मुश्किल भी - "जिन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठ"

    आभार तथा साधुवाद

    ReplyDelete
  9. pramod ji, rakessh ji aap dono ka bahut bahut shukriya

    ReplyDelete
  10. ma khud k bare me sochu to tab jab tere bare mein sochne se fursat mile
    "Tanha ho k b tanha nhi hota fir kya sochu apne bare mein "
    wase rewa didi tusi kamaal ho akhir behan kis ki haan my my my.....

    ReplyDelete
  11. मन की व्यथा अभिव्यक्त कर पाना आसान नहीं!
    सुन्दर रचना!

    ReplyDelete
  12. Rewa ji aapki har panktiyo me ik dard sa chhupa hai jo kahna to chahti hia juba par sayad tabhi ek hawa ka jhoka aata hai aur kahta hai ruk abhi itni jaldi bhi kya hai......
    so good.

    ReplyDelete
  13. shrikrishna ji..bahut bahut shukriya for ur nicee words

    ReplyDelete