जब जब अकेली होती हूँ
जी भर कर रोती हूँ ,
कैसे बताऊ मन की व्यथा ?
रोज़ टूटती हूँ
फिर उठ खुद को जोडती हूँ ,
उन्हें सहारा और ताक़त
देने के लिए मजबूत
बन जाती हूँ ,
पर उनके व्यव्हार से
फिर टूट जाती हूँ ,
भगवान ने ऐसी फितरत
ही बनायीं है इंसान की ,
जब वो कमज़ोर होता है
तो उसे प्यार नज़र आता है ,
पर वही जब ठीक होता है
तो सब भूल जाता है ,
ये सोचे बिना की ,
जिसने अपना
निरछल प्यार बरसाया
वो तब भी वहीँ था
और अब भी वहीँ है /
रेवा
Kitna sahee farmaya aapne!
ReplyDeleteसटीक अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteरेवा जी...
ReplyDeleteबेहतरीन भावो का सुन्दर संगम ।
कोमल भावो की अभिवयक्ति......
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteBehad khoobsoorat rachana!
Deleteaap sabka bahut bahut shukriya
ReplyDeleteकल 14/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
जब वो कमज़ोर होता है
ReplyDeleteतो उसे प्यार नज़र आता है ,
पर वही जब ठीक होता है
तो सब भूल जाता है ,
ये सोचे बिना की ,
जिसने अपना
निरछल प्यार बरसाया
वो तब भी वहीँ था
और अब भी वहीँ है!
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति
yashwant ji shukriya
ReplyDeleteMadhureshji bahut bahut shukriya
ReplyDeleteक्या बात कही है आपने...
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन रचना है....
सुन्दर:-)
Reenaji Bahut Bhaut shukriya apka
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