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Saturday, February 23, 2013

प्यार या छलावा

पता नहीं ऐसा क्या था उसमे 
कि खिंची चली गयी मैं ,
पता नहीं कब कैसे 
मन मे उतर गया वो ,
ये उसका प्यार था 
या कुछ समय का छलावा 
नहीं जान पाई ,
अपने पुरे मन से 
चाहा था मैंने उसे ,
पर लगता है 
ज़माने की तरह 
बेवफा है वो भी ,
प्यार किया 
प्यार भरी बातें भी की 
पर बाद मे उस प्यार को 
दोस्ती का जामा पहना दिया ,
कितना आसान होता है न 
"दिल को तोड़ कर भी 
न तोडना "


रेवा


6 comments:

  1. हमने तो जिंदगी का रुख ही मोड़ दिया है
    जाने खुदा अच्छा बुरा हमने क्या किया है
    जिसे चाँद तारे तोड़ने हों तोड़ता रहे
    हमने तो चाँद देखना भी छोड़ दिया है
    इस जिंदगी की राह में जितने बेवफा मिले
    उनमे तेरा इक नाम और जोड़ दिया है

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  2. ये तो नए जमाने का दस्तूर होता जा रहा है ....।

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  3. और उस से भी अधिक मुश्किल होता हैं अपने मन की बातों को लिखना

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