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Tuesday, January 21, 2014

तड़पते एहसास


जीवन साथी जब दूर हो तो ,
कभी कभी मन को
समझाना आसां लगता है
पर खुद को समझाना
बहुत मुश्किल ,
हम सबको धोखा
दे सकते हैं
पर अपने आप को नहीं ,
दिन तो निकल जाता है
पर शाम होते ही ,
यादों के साये
घेर लेते हैं
आँखे बरबस 
भीग जाती है ,
बाहें आलिंगन को
तरसने लगती है ,
मन, दिल ,आत्मा
सब रुदन करने
लगते हैं ,
उस एक पल ऐसा
महसूस होता है
मानो
सारी दुनिया बेकार है ,
पर फिर भी
जीना पड़ता है ,
तड़पते एहसासों
के साथ।


रेवा 

11 comments:

  1. मन को भिगोती मार्मिक प्रस्तुति ! बहुत सुंदर !

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  2. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवारीयचर्चा मंच पर ।।

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  3. बहुत मर्मस्पर्शी...

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  4. कोमल भावसिक्त रचना..
    http://mauryareena.blogspot.in/

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  5. beautiful touching poem Rewa...keep t up dear

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  6. बहुत सुन्दर एहसासों और शब्दावली के साथ रची गई बेहतरीन रचना

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  7. ये दूरियाँ,ये बेचैनियाँ,ये तड़प......जीते रहने से ही तो मिटेंगी :-)

    सस्नेह
    अनु

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