कई बार
प्रेम अप्रेम हो जाता है
और जब ऐसा होता है न
दिल तड़प उठता है
अचानक आये
इस बदलाव से स्तब्ध ,
समझ नहीं पाता की
चूक कहाँ हो गयी
कोशिश बहुत करता है दिल
वापस पाने को
वो तमाम एहसास
पर मन कहता है
अब जाने भी दो
जब एहसास प्रेम स्वतः
ही आते हैं दबे पांव
तो कोशिशें कितनी भी कर लो
वो कड़वाहट कम
कर सकती है
दरारें भर सकती है
पर प्रेम नहीं करवा सकती
चलो आज से तुम्हें
तुम्हारा अप्रेम मुबारक
और मुझे मेरा प्रेम
रेवा
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-05-2017) को "आम और लीची का उदगम" (चर्चा अंक-2978) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार
Deleteप्रेम प्रेम से ही मिलना संभव है, जहाँ कडुवाहट का मतलब चाशनी में नीम का मिलना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
शुक्रिया
Deleteअद्वितीय सोच
ReplyDeleteइस लेखनी का कायल हो गया
बहुत बहुत शुक्रिया आपका
Deleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस - शरद जोशी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteशुक्रिया हर्षवर्धन जी
Deleteबढ़िया लिखा
ReplyDeleteशुक्रिया
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