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Monday, May 21, 2018

प्रेम अप्रेम




कई बार
प्रेम अप्रेम हो जाता है
और जब ऐसा होता है न
दिल तड़प उठता है
अचानक आये
इस बदलाव से स्तब्ध ,
समझ नहीं पाता की
चूक कहाँ हो गयी

कोशिश बहुत करता है दिल
वापस पाने को
वो तमाम एहसास
पर मन कहता है
अब जाने भी दो
जब एहसास प्रेम स्वतः
ही आते हैं दबे पांव
तो कोशिशें कितनी भी कर लो
वो कड़वाहट कम
कर सकती है
दरारें भर सकती है
पर प्रेम नहीं करवा सकती

चलो आज से तुम्हें
तुम्हारा अप्रेम मुबारक
और मुझे  मेरा प्रेम

रेवा


10 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-05-2017) को "आम और लीची का उदगम" (चर्चा अंक-2978) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. प्रेम प्रेम से ही मिलना संभव है, जहाँ कडुवाहट का मतलब चाशनी में नीम का मिलना
    बहुत सुन्दर

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  3. अद्वितीय सोच

    इस लेखनी का कायल हो गया

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका

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  4. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस - शरद जोशी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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    Replies
    1. शुक्रिया हर्षवर्धन जी

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