मैं इश्क हूँ
मैं अमृता हूँ
मैं अमृता हूँ
मैं उस साहिर के
होठों से लगी
होठों से लगी
उसके उंगलियों के बीच
अधजली सी सिगरेट हूँ....
वो जो धुआं है न
जिसका फैलाव दिख रहा है?
जिसका फैलाव दिख रहा है?
वो इस बावरे दिल
और उस दायरे को भर रहा है
धीरे-धीरे,रफ़्ता-रफ़्ता
मुझ में ही घुलता जा रहा है
मुझ में ही घुलता जा रहा है
उस ऐश ट्रे में जो चंद राख
और एक टुकड़ा सिगरेट का
और एक टुकड़ा सिगरेट का
छूटा पड़ा है न ?
उसी लत के सहारे
ये सफ़र ज़िन्दगी का
मुकम्मल कर रही हूँ मैं
मुकम्मल कर रही हूँ मैं
बस तुम भी इसी तरह
मुझमें सुलगते रहना
मुझमें सुलगते रहना
सिगरेट की टूटन मैं पीती रहूँ
और तुझे ही जीती रहूँ।
और तुझे ही जीती रहूँ।
रेवा
#अमृता के बाद की नज़्म
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 31 मई 2018 को प्रकाशनार्थ 1049 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
shukriya
Deleteप्रिय रेवा दी , क्या ख़ूब उकेरा है अमृता को अपनी कलम में। उनकी रसीदी टिकट याद आ गयी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर नज़्म
सादर
शुक्रिया बहना
Deleteबहुत सार्थक सशक्त रचना जिसने भी अमृता जी को पढ़ा है वो ये ही सोचेगा अगर वो स्वयं भी लिखती तो ऐसा ही कुछ लिखती।
ReplyDeleteअप्रतिम ।
अह्हा....बहुत बहुत शुक्रिया
Deleteshukriya dilbag ji
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteशुक्रिया
Deletewah! Aapne sach mein uske pyaar ko samajh kar tarasha hai shabdon mein..
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
Deletethank u so much
Deleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ३१ मई २०१८ - विश्व तम्बाकू निषेध दिवस - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteलाजवाब !!
ReplyDeleteशुक्रिया
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