बहुत खुश था
वो गांव के
चौराहे पर खड़ा
बूढ़ा पीपल,
बरसों से खड़ा था अटल
सबके दुःख सुख का साथी
लाखों मन्नत के
धागे खुद पर ओढ़े हुए ,
कभी पति की लम्बी उम्र
कभी धन की लालसा
कभी क़र्ज़ वापसी
तो कभी अच्छी फ़सल
बेटी का ब्याह
बेटे की चाह
और न जाने क्या क्या
पर पहली बार
किसी ने अपने लिए
एक नन्ही कली की
मन्नत मांगी ,
तो पीपल को लगा
उसका जन्म सफल
हो गया इस धरती पर ....
लेकिन आज वो ज़ार ज़ार रोया
जब उस नन्ही कली को
चिथड़ों और
वह्शाना निशानों के साथ
अपने पास बैठ बिलखते
रेवा
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सेठजी, मनिहारिन और राधा रानी “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (09-07-2018) को "देखना इस अंजुमन को" (चर्चा अंक-3027) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
आभार
Deleteनिमंत्रण विशेष : हम चाहते हैं आदरणीय रोली अभिलाषा जी को उनके प्रथम पुस्तक ''बदलते रिश्तों का समीकरण'' के प्रकाशन हेतु आपसभी लोकतंत्र संवाद मंच पर 'सोमवार' ०९ जुलाई २०१८ को अपने आगमन के साथ उन्हें प्रोत्साहन व स्नेह प्रदान करें। सादर 'एकलव्य' https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteshukriya
Deleteजय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 10/07/2018
को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
shukriya
Deleteबेहद मार्मिक रचना !!!!!! बूढ़े पीपल की आत्मा तो कंपकंपाई पर वहशियों को तो जरा शर्म नहीआई |
ReplyDeleteसच कहा ...शुक्रिया
Deleteमार्मिक और सुन्दर रचना .
ReplyDeleteआभार
Deleteबहुत ही मार्मिक ....।
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteसंवेदनाओं का जलता अलाव।
ReplyDeleteअप्रतिम रचना।
शुक्रिया
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