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Monday, July 23, 2018

मैं



जीवन की
हर ख़ुशी
तुम से शुरू होकर
तुम पर ही क्यों
खत्म हो ??

जब इस दुनिया में
हम अकेले आते हैं
और अकेले ही जातें हैं
तो फिर हर बार
हर जगह तुम क्यों ?

तुम तुम की रट छोड़ कर
मैं, अपने मैं से खुश
नहीं रह सकती क्या ??
आखरी अपने लिए
और अपने किये
हर काम के लिए तो
मैं ही जिम्मेदार हूँ न
फिर खुशी के लिए
तुम क्यों ?

चलो आज से
एक कोशिश करती हूं
तुम को आज़ादी
देती हूं
और मैं अपने मैं से
खुश रहने की शुरुआत
करती हूं ...


#रेवा 


6 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24-07-2018) को "अज्ञानी को ज्ञान नहीं" (चर्चा अंक-3042) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बेहतरीन रचना रेवा जी

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    1. शुक्रिया अनुराधा जी

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  3. बहुत सुंदर रचना रेवा जी...बाँधने की कोशिश में मन ज्यादा छटपटाता है....मुक्त होने का भाव खुशी भर जाता है।

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    1. सच कहा आपने ....शुक्रिया

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