रोज़ जब तुम
ऑफिस के लिए
निकलते हो तो
मैं दरवाज़े की
ओट में खड़ी हो जाती हूँ
कहती कुछ नहीं तुमसे
पर मन ही मन
तुम्हारी सेहत
तुम्हारी सलामती की
दुआ मांगती हूँ
और ये विश्वाश
दिलाती हूँ तुमको की
हमारे संसार, बच्चों
और बड़ों का मैं
पूरा ध्यान रखूंगी
ताकि जब तुम बाहर रहो
तो सुकून से भरा रहे
तुम्हारा दिल और
ये विशवास रहे मन में की
तुम शाम को
खिलखिलाते घर और
मुस्कुराते चेहरों को देखोगे
ये इसलिए नहीं करती की
तुम पुरुष हो और मैं स्त्री
कमाना तुम्हारा धर्म और
घर संभालना मेरा कर्तव्य
बल्कि ये इसलिए करती हूँ
क्योंकि मैं तुमसे
बेइन्तहा प्यार करती हूँ।
#रेवा
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (25-07-2018) को "कुछ और ही है पेट में" (चर्चा अंक-3343) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
शुक्रिया
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteआभार
Deleteबहुत नाज़ुक अहसास लिए प्रेम को जीवन में उतारती हुई रचना ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...
आभार
Deleteशुक्रिया
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