मेरे अंतर में
एक दीया सदा
प्रजवलित रहता है
जो मुझे हर ग़लती
में आगाह करता है
प्रजवलित रहता है
जो मुझे हर ग़लती
में आगाह करता है
जो मेरी नकारत्मकता को
सकारात्मक ऊर्जा में
बदलता है
सकारात्मक ऊर्जा में
बदलता है
जो मेरे अंदर
मानवता की लौ को
किसी हाल में बुझने
नहीं देता
मानवता की लौ को
किसी हाल में बुझने
नहीं देता
उस दीये की लौ की
ऊष्मा से मेरे सारे
दर्द वाश्प बन
उड़ जाते है
ऊष्मा से मेरे सारे
दर्द वाश्प बन
उड़ जाते है
ये मुझे मेरी काया को
पढ़ने में मदद करता है
पढ़ने में मदद करता है
और मुझे प्यार की
खुश्बू से ओत प्रोत
रखता है
खुश्बू से ओत प्रोत
रखता है
ये मेरे अंतर का दीया
मेरी काया का प्राण स्रोत है
जिस दिन ये काया मिट्टी
हो जाएगी
मेरी काया का प्राण स्रोत है
जिस दिन ये काया मिट्टी
हो जाएगी
उस दिन ये दीया
साईं तेरे दर पर जलेगा
साईं तेरे दर पर जलेगा
#रेवा
#अंतर का दिया
सत्य कहा है आपने बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteशुक्रिया
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ReplyDeleteये मेरे अंतर का दीया
मेरी काया का प्राण स्रोत है
जिस दिन ये काया मिट्टी
हो जाएगी
उस दिन ये दीया
साईं तेरे दर पर जलेगा सुंदर रचना 👌
बहुत शुक्रिया
Deleteकिसी के दर पर जले न जले
ReplyDeleteआपकी कविता और अल्फ़ाज़ों में ये दीपक हमेशां प्रज्वलित रहे।
क्योंकि दिए से दिया जलना चाहिए।
बेहद सुंदर रचना।
बहुत शुक्रिया
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (14-09-2018) को "हिन्दी दिवस पर हिन्दी करे पुकार" (चर्चा अंक-3094) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हिन्दी दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteशुक्रिया
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