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Friday, September 28, 2018

उर्मिला


बार बार 
लिखना चाहा
पर वो शब्द ही
नहीं मिलते जो
उर्मिला के दर्द
उसकी व्यथा
उसके विरह को
बयां कर सके

कितनी आसानी से
नव ब्याहता ने
पति के भ्राता प्रेम को
मान देकर
चौदह वर्ष की दूरी
और विरह को
बर्दाश्त करना स्वीकारा
उसपर से ये वादा कि
उसके आंखों से
आँसू भी न बहे
उफ्फ ऐसी व्यथा ...

तकलीफ़ की बात तो
ये भी है कि
इस स्त्री के सहज
त्याग को
इतिहास ने कहीं
जगह न दी
कोई उल्लेख नहीं

राम मर्यादा पुरूषोत्तम
सीता की
अग्नि परीक्षा
लक्ष्मण का भ्रात प्रेम
पर उर्मिला कुछ नहीं ....

जानती हूँ  सीता बनना
आसान नहीं
पर उर्मिला बनना
नामुमकिन है ....

पर ए स्त्री
तुम न सीता बनना
न उर्मिला
बस औरत ही रहना....

#रेवा 
#उर्मिला 

12 comments:


  1. पर ए स्त्री
    तुम न सीता बनना
    न उर्मिला
    बस औरत ही रहना....


    सुंदर रचना 👌

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  2. बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 28/09/2018 की बुलेटिन, शहीद ऐ आज़म की १११ वीं जयंती - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. ये बिलकुल नया विषय है.
    ये एक स्त्री के प्रति अन्याय है..उसके प्रेम को सम्मान नहीं देना
    उलटे उसी से कहो की रोना मत.
    जवानी सारी विरह में कट गयी..
    फेरों के सात वचनों का अनादर हुआ..
    लेकिन आपकी रचना की ये बात कि तुम औरत ही बनी रहना..काफी ज़ोरदार है.
    रंगसाज़

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  5. बहुत सुन्दर

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