मैं बीज गाथा लिखना चाहती हूँ
उस नन्ही सी बीज का जो
बढ़ना चाहती है
अपनी कोख़ में फल फूल
को पालना चाहती है
पर बेदर्दी से कुचल दिया
जाता है उसे
अपनी कोख़ में फल फूल
को पालना चाहती है
पर बेदर्दी से कुचल दिया
जाता है उसे
मैं अन्न की गाथा लिखना चाहती हूँ
जो सींची जाती थी
जो सींची जाती थी
किसान के पसीने से
पर अब उस किसान
को कुचल दिया जाता है
और खूनी अन्न को लाश बना
बेचा जाता है
को कुचल दिया जाता है
और खूनी अन्न को लाश बना
बेचा जाता है
मैं उन पौध की गाथा लिखना चाहती हूँ
जो उगते हैं हर जगह कुछ जंगली
होते हैं और कुछ सामान्य
पर उन सब को ज़हर से
जो उगते हैं हर जगह कुछ जंगली
होते हैं और कुछ सामान्य
पर उन सब को ज़हर से
भर आतंकवादी बना दिया जाता है
इसलिए मैं प्रेम लिखती हूँ
क्योंकि नफ़रत से भरी इस
दुनिया में प्रेम ही है जो
क्योंकि नफ़रत से भरी इस
दुनिया में प्रेम ही है जो
हम सबको बचा सकता है
#रेवा
बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना 🙏
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18.10.18 को चर्चा मंच पर प्रस्तुत चर्चा - 3128 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
शुक्रिया
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